पिछले 25 सालों से मैं ट्रेंड देख रही हूं.. बच्चियों, नाबालिगों पर अपराधी यौन अपराध को अंजाम देते हैं तो इन परिवार, स्कूल अस्पतालों के शीर्ष पर बैठे अभिभावक चुप्पी साध बच्चों को समझाते हैं चुप रहना, किसी से मत कहना। तुम्हारी और परिवार, संस्थानों की बदनामी होगी और मामले को पुलिस तक नहीं पहुंचने दिया जाता। क्यों ?

इस तरह करने से अपराधियों का मनोबल बढ़ता है। वे भुक्तभोगियों की संस्थाओं, परिवार की मन:स्थिति को ज्यादा समझते हैं। वे बच्चों को फिर मोलेस्ट करते हैं और पीड़ित कुछ नहीं कर सकता ?

यह कैसा समाज है जो अपराधियों के प्रति नर्म है.. ‘छोड़ो कोई खास बात नहीं है’ कहता है, अपराधियों को और बलवान बनाता है।  

2 दशक पहले मैं बिहार की राजधानी पटना में थी। तभी एक खबर छपी कि दिल्ली के एक स्कूल में एक नाबालिग लड़की का बलात्कार हुआ है किसी राहगीर द्वारा। उसने परिवार को कहा- परिवार ने साथ दिया, उसकी मनोदशा पर व्यथित हुए । एफआईआर कराया, गवाही बच्ची की और अपनी दी। उन्होंने अंत तक साथ दिया। पुलिस जब जांच पड़ताल करने के लिए स्कूल पहुंची तो स्कूल ने पल्ला झाड़ लिया। कहा- हमारा स्कूल बदनाम हो जाएगा, स्कूल सरकारी था। शिक्षकों का वेतन नहीं कटने वाला था। 

बच्ची का हौसला बना हुआ था, कारण परिवार साथ दे रहा था पर जब स्कूल ने बच्ची का नाम काट दिया तो उसका हौसला टूट गया। बच्ची ने आत्महत्या कर ली।

क्या स्कूल वाले- जब तक बच्चा स्कूल में रहता है- बच्चों के अभिभावक नहीं हैं ? उसे किस बात का डर है ? क्या उसकी ड्यूटी बच्चों की हर तरह से हिफाज़त करना और अपराधी को सज़ा दिलवाना नहीं है ?

ऐसे कमज़ोर दिल वाले अभिभावक हमें चाहिए क्या जो बच्चों का साथ नहीं देकर स्कूल का देते हैं ?

अब मैं 24 साल से दिल्ली में हूं। हाल ही में कई घटनाएं दिल्ली में हुई हैं, अभी नोएडा के एक नामी स्कूल में केजी में पढ़ने वाली 6 वर्षीय बच्ची का यौन शोषण वहां काम करने वाले मज़दूर ने किया। परिजनों की शिकायत पर केस दर्ज हुआ । स्कूल ने मामला छुपाया। आखिर क्यों ?

निजी स्कूल था, परिजनों ने शिकायत की फिर स्कूल की हेड मिस्ट्रेस, क्लास टीचर सहित 4 व्यक्तियों को गिरफ्तार किया गया। यह सही स्टेप है। 

बच्ची ने हेड मिस्ट्रेस, क्लास टीचर सबसे शिकायत की थी  फिर भी उन्होंने कोई कदम नहीं उठाकर उसे छुपाया।  स्कूल में सीसीटीवी कैमरा भी था लेकिन लेकिन इसमें मज़दूर का कोई कवरेज़ नहीं था।

जब घर में कोई बड़ा रिश्तेदार बच्चे के समीप सुविधा पाता है तो उसे इस अपराध की श्रेणी में आए कृत्यों को कर सकता है। ऐसे में कुछ होता है तो क्या उस अपराधी को कि रिश्तेदार है कह कर छूट देना- बच्चों को मनोरोगी बनाना स्वीकार है।

ऐसे बच्चे फिर समाज में अपने आप को कमज़ोर पाते हैं। यदि अपराधी को सज़ा होती है तो वह मनोरोगी नहीं होते ।

हम क्यों नहीं बच्चों के बारे में सोचते हैं। क्या सिर्फ इसलिए कि वो लड़कियां हैं ?

ये कैसा समाज है- इसमें स्कूल, अस्पताल और घर भी आता है। लोग अपराधी को कुछ नहीं कहते और निर्दोष लड़कियों को अपराधी समझने लगते हैं। रेप विक्टिम को ही नीची नज़रों से देखते हैं, उनका राह में चलना तक मुश्किल हो जाता है ।

यह समाज लड़कों में ऐसा क्या देखता है जो लड़कियों में नहीं दिखता ? माताओं को भी बच्चियां नहीं सुहातीं। सदियों से वे बच्ची पैदा होने पर खुद उन्हें मारा चाहती हैं और मारती आईं हैं। अभी हाल में 32 साल की मां ने अपनी दो बच्चियों को- एक नवजात और एक उससे बड़ी बच्ची को गला घोंट कर मार दिया और सूटकेस में बंद करके पड़ोसी की छत पर फेंक दिया। इसके लिए मां को अभी 6 वर्षों के बाद दिल्ली के कोर्ट ने आजीवन कारावास दिया है। 

लड़कियों के प्रति समाज, परिवार का सौतेला व्यवहार शर्मनाक है, गंदा है, बिना किसी सही कारण के है। जब अपनी मां ही हत्यारी है, सारा समाज हत्यारा है, संस्थाएं हत्यारी हैं तो भी लड़कियां कुछ कर रहीं हैं, ये उनका अकेले का हौसला है। वे समाज की दुर्गा हैं, रानी लक्ष्मीबाई हैं.. अकेले अपनी जीत है का परचम फहराते हुए। 

 (लेखिका सुप्रीम कोर्ट की वरिष्ठ वकील हैं और ये उनके निजी विचार हैं। आपको यदि कमलेश जैन से किसी प्रकार का परामर्श लेना है तो आप उन्हें  mailnitiriti@gmail.com पर संपर्क कर सकते हैं ) 

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Kamlesh Jain

कमलेश जैन सुप्रीम कोर्ट की वरिष्ठ वकील हैं और देश में कई बड़े केस लड़ चुकी हैं। चार दशकों से भी ज्यादा समय से कमलेश जैन देश के तकरीबन सभी हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में मुकदमो की पैरवी कर चुकी हैं। महिलाओं के अधिकार और कैदियों को लेकर वो हमेशा मुखर रही हैं। कमलेश जैन नीतिरीति के लिए अपने विचार और अनुभव लिखती रही हैं।

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