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Author: Kamlesh Jain
कमलेश जैन सुप्रीम कोर्ट की वरिष्ठ वकील हैं और देश में कई बड़े केस लड़ चुकी हैं। चार दशकों से भी ज्यादा समय से कमलेश जैन देश के तकरीबन सभी हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में मुकदमो की पैरवी कर चुकी हैं। महिलाओं के अधिकार और कैदियों को लेकर वो हमेशा मुखर रही हैं। कमलेश जैन नीतिरीति के लिए अपने विचार और अनुभव लिखती रही हैं।
सुप्रीम कोर्ट द्वारा बुधवार को बुलडोजर-कार्रवाई की सीमा तय करना एक दूरदर्शी फैसला माना जाएगा। अदालत ने साफ कर दिया है कि किसी संपत्ति को सिर्फ इसलिए नहीं तोड़ा जा सकता, क्योंकि उस संपत्ति का कथित मुखिया आरोपी है। साथ ही, उसने कई दिशा-निर्देश जारी करके ऐसे मामलों की सांविधानिक स्थिति भी साफ कर दी है। दरअसल, पिछले दिनों से कई सरकारों पर ये आरोप लग रहे थे कि ऐसी कार्रवाइयों में पक्षपातपूर्ण रवैया अपनाया जा रहा है, जिससे न्याय की बुनियादी अवधारणा भी खंडित हो रही है। हालांकि, खबर यही है कि इन कार्रवाइयों का नुकसान अल्पसंख्यकों की तुलना…
सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि अदालतों को स्त्रियों पर टिप्पणी करते वक्त नारी-द्वेष से भरी एवं प्रतिकूल प्रभाव डालने वाली भाषा पर नियंत्रण रखना चाहिए। ऐसी टिप्पणी का असर नकारात्मक होता है, जिससे न सिर्फ न्यायाधीश की छवि खराब होती है, बल्कि पूरी न्याय-व्यवस्था ही कठघरे में खड़ा हो जाती है। शीर्ष अदालत ने यह बात पटना उच्च न्यायालय की उस टिप्पणी के संदर्भ में कही, जिसमें कहा गया था कि मेकअप की सामग्रियां किसी विधवा के काम नहीं आतीं। निस्संदेह, यह अत्यंत आपत्तिजनक टिप्पणी है। यह नारी-भावना और शालीनता के खिलाफ भी है। देखा जाए, तो यह पूरा…
पिछले 25 सालों से मैं ट्रेंड देख रही हूं.. बच्चियों, नाबालिगों पर अपराधी यौन अपराध को अंजाम देते हैं तो इन परिवार, स्कूल अस्पतालों के शीर्ष पर बैठे अभिभावक चुप्पी साध बच्चों को समझाते हैं चुप रहना, किसी से मत कहना। तुम्हारी और परिवार, संस्थानों की बदनामी होगी और मामले को पुलिस तक नहीं पहुंचने दिया जाता। क्यों ? इस तरह करने से अपराधियों का मनोबल बढ़ता है। वे भुक्तभोगियों की संस्थाओं, परिवार की मन:स्थिति को ज्यादा समझते हैं। वे बच्चों को फिर मोलेस्ट करते हैं और पीड़ित कुछ नहीं कर सकता ? यह कैसा समाज है जो अपराधियों के…
किसी भी राष्ट्र में नागरिक तब जीवन से खुश समझे जाते हैं, जब उस देश में न्याय सस्ता, सुलभ और संतुष्ट करने वाला हो। न्यायपालिका प्रजातंत्र का सबसे महत्त्वपूर्ण खंभा है, पर हम जानते हैं यही लड़खड़ाया हुआ है। न तो अपराधी खुश हैं, यदि वह गरीब हैं, और विक्टिम तो हैं ही नहीं। यह देश न्याय के मामले में इतने निचले पायदान पर जा गिरा है कि हमारे देश की राष्ट्रपति महामहिम द्रौपदी मुमरू व्यथित हैं, परेशान हैं। लगातार जबसे इस पद पर आसीन हैं, गरीब, निचले तबके के लोगों की भीड़, बिना जमानत, ट्रायल के आसरे पड़े लाखों…
बात 1992-93 की है। हजारीबाग में एक आदिवासी लड़की पुलिस कांस्टेबल के पद पर काम कर रही थी। एक दिन सुबह 10 बजे वह अपने दफ्तर के लिए अपने घर से रवाना हुई। रास्ते में उसके वरीय पदाधिकारी का घर था। पदाधिकारी ने उसे खिड़की से अंदर बुलाया- कहा-मेम साहब कुछ बात करना चाहती हैं। वह चली गई। वहां जाकर उसने पाया कि उक्त पदाधिकारी के साथ एक और वरीय पदाधिकारी बैठे हैं। पहले पदाधिकारी की पत्नी या अन्य कोई वहां नहीं था। दोनों ने उसके साथ बलात्कार किया और कुछ घंटों के बाद वहां से जाने के लिए कहा।…
अप्रैल 1930 में जवाहर-लाल नेहरू नैनी जेल में बंद थे। जेल में निवास की स्थितियां तब भी नरक जैसी थी, कारण भारतीय ग़ुलाम पहले थे और मनुष्य बाद में। लीगल सिस्टम तब जो था वह अपर्याप्त था और अवैज्ञानिक था । जिनके ऊपर मुक़दमा चलाया जाता वे ‘थोड़े कम’ मनुष्य थे। आजादी के 75 साल बीत चुका है लेकिन लीगल सिस्टम बदला नहीं है। कमोबेश वही है। नेहरू खुद जेल में थे, कई नेता जेल में रह चुके हैं पर क़ानून को,अपराधियों के लिए बदला नहीं गया ग़रीब को असहाय को आज भी न्याय नहीं मिलता यहां अपराधी को ईनाम…
भारत में रेप का offence परिवार की शर्म और हया से जुड़ा हुआ है, इसी कारण लोग अपनी बेटियों के साथ ऐसा offence होने पर केस रजिस्टर कराना उचित नहीं समझते। सिर्फ 20 फीसदी केस ही पुलिस के यहां रजिस्टर होने के लिए जाते हैं। इसके अलावा, केस रजिस्टर कराने में बहुत देरी हो जाने के कारण जो जरूरी साक्ष्य होता है वो खत्म हो जाता है। यही नहीं, ज्यादातर, पुलिस कानून के अनुसार साइंटिफिक इन्वेस्टिगेशन नहीं करती, इससे भी सजा की दर बहुत कम हो जाती है। नियम के मुताबिक पुलिस को केस दर्ज हो जाने के बाद विक्टिम…
राजधानी दिल्ली के, कंझावला थाना क्षेत्र के, पुटकला गांव में, दो बच्चियां पैदा होने से गुस्साए पिता द्वारा उन्हें मारकर दफनाने जाने का मामला प्रकाश में आने के बाद हर कोई सन्न है। बच्चियों की माँ ने पुलिस में मामला दर्ज कराने पर पुलिस ने एसडीएम की अनुमति लेकर दफनाई गईं बच्चियों के शव को, श्मशान घाट से निकाल कर पोस्टमॉर्टम के लिए भेजा। इनकी माँ रोहतक की पूजा थी। अस्पताल में बच्चों का जन्म हुआ। पति नीरज सोलंकी अस्पताल पहुंचा और बच्चों को लेकर फरार हो गया। बाद में उनकी हत्या कर, श्मशान में दफना कर, फरार हो गया।आरोपी…
पिछले वर्ष सामूहिक बलात्कार की शिकार एक नाबालिग लड़की जयपुर के सरकारी स्कूल में पढ़ती थी। घटना के बाद ही स्कूल ने उसका नाम काट दिया। पांच महीनों तक उसे स्कूल आने से वंचित किया गया। जब उसने इस अत्याचार के विरुद्ध आवाज उठाई तो स्कूल एडमिनिस्ट्रेशन ने कहा, ‘उसके स्कूल आने से स्कूल का वातावरण दूषित हो जाएगा।’ यही नहीं लड़की को बोर्ड की परीक्षा में बैठने की अनुमति भी नहीं दी और एडमिट कार्ड नहीं दिया गया। इस पर शहर की ‘चाइल्ड वेलफेयर कमेटी’ ने बीच-बचाव किया जिसके बाद स्टेट एजुकेशन डिपार्टमेंट ने एक जांच के आदेश दिए।…
भारत में जब दूसरी संस्कृतियों व समाज की तरह संयुक्त रिश्ते टूटने लगे, लोग एकल परिवार बसाने लगे, यानी पति-पत्नी और बच्चे। तब से वृद्धों को बोझ एवं अपने मकान की चार दिवारी से उनको निकाल बाहर किया जाने लगा, तब से वरिष्ठ नागरिक (60 वर्ष या उससे ऊपर उम्र) या एक दूसरी श्रेणी के वरिष्ठ नागरिक (वे लोग जिनकी अपनी कोई संतान नहीं है पर वारिस है उनकी संपत्ति के) घर से बाहर किये जाने लगे, एक छत, खाना-पीना, उचित इलाज, स्नेह, आासन का अभाव झेलने लगे, दर-दर की ठोकर खाने लगे तब लाचार होकर सरकार ने यह कानून…