किसी भी राष्ट्र में नागरिक तब जीवन से खुश समझे जाते हैं, जब उस देश में न्याय सस्ता, सुलभ और संतुष्ट करने वाला हो। न्यायपालिका प्रजातंत्र का सबसे महत्त्वपूर्ण खंभा है, पर हम जानते हैं यही लड़खड़ाया हुआ है। न तो अपराधी खुश हैं, यदि वह गरीब हैं, और विक्टिम तो हैं ही नहीं। यह देश न्याय के मामले में इतने निचले पायदान पर जा गिरा है कि हमारे देश की राष्ट्रपति महामहिम द्रौपदी मुमरू व्यथित हैं, परेशान हैं। लगातार जबसे इस पद पर आसीन हैं, गरीब, निचले तबके के लोगों की भीड़, बिना जमानत, ट्रायल के आसरे पड़े लाखों लोगों को जेल में देखती हैं और सर्वोच्च न्यायापलिका से गुहार लगा चुकी हैं कि अब आप ही कोई उपाय निकालें जिससे उचित न्याय हो। गरीबों, पिछड़ों के साथ यह अन्याय न हो।


अब वे परेशान हैं, महीना होने को आया बंगाल की ट्रेनी डाक्टर की निर्मम हत्या, बलात्कार पर जिसके साथ यह कुकृत्य अस्पताल में उसके ही आसपास के लोगों ने किया फिर भी अभी जांच ही पूरी नहीं हो रही। कारण, सर्वोच्च लेवल पर राज्य प्रशासन के स्तर पर दोषियों के बचाव का प्रयास। धरने पर आए चिकित्सकों पर पुलिस का निर्मम अत्याचार। आज स्थिति यह है कि राजनीतिज्ञ, अपराधी एक गैंग बना कर जाति के आधार पर, पैसे के आधार पर अपराधियों की पैरवी कर रहे हैं। न्यायालय पूरी तरह अर्धनिद्रा में है, पुलिस ऊपर की बात सुन रही है। पूरी व्यवस्था ठप लगती है। साढ़े चार करोड़ मुकदमे न्यायालयों में पेंडिंग हैं, जिन्हें समाप्त करने में 50-60 वर्ष लगेंगे। न्यायाधीश बढ़ाने से भी।


कॉलेजियम व्यवस्था भी उत्तरदायी
कारण है सर्वोच्च न्यायालयों में कॉलेजियम व्यवस्था जहां करीब 100-150 परिवारों से न्यायाधीश आते हैं, ऐसी जगह से नहीं जो किसी न्यायाधीश या सीनियर वकील के संबंध न हो। परिवारवाद, राजनीति की तरह यहां भी है। वकीलों का चयन भी यूं ही होता है। अपराधी अमीर है तो कैसे भी मुकदमे में जमानत मिलती ही है, गिनती के दिन जेल में कटते हैं। जेल में भी ठाठ से समय गुजर रहा होता है। बड़े वकील करोड़ों लेकर बहस करते हैं, राजनीतिक कारणों से फंसाया गया।
गरीब हो तो एक फूटी थाली चुराने के एवज में 15 वर्ष अंदर रह सकता है बिना ट्रायल के। कानून बदलता भी है तो उसका पालन नहीं होता। क्रिमिनल प्रॉसिजर कोड कहता है पुलिस अभियुक्त को अरेस्ट करने के 24 घंटे के अंदर मजिस्ट्रेट के यहां पेश करेगी। पीड़ित के बयान की रिकार्डिग होगी पर ऐसा कहां होता है। हाल में अजमेर शरीफ के यौन उत्पीड़न, धोखाधड़ी, ब्लैकमेलिंग के केस का 32 वर्ष बाद फैसला आया। सौ से ज्यादा औरतें, बच्चियां थीं जिन पर जुल्म हुआ था। समय-समय पर अपराधियों को रियायत दी गई, कारण वर्ग विशेष से संबंध रखते थे अपराधी। कहीं मुस्लिम, यादव है तो रियायत होगी, कहीं किसी और कारण जाति आदि से।


सबसे पुराने अंडरट्रायल की रिहाई
1983 में मैंने 37 वर्ष के दुनिया के सबसे पुराने अंडरट्रायल बोका ठाकुर की रिहाई करवाई। 35 वर्ष से कैद 16 वर्ष से रिहाई के बावजूद कैद रूदल साहा की रिहाई करवाई। पर क्या कानून बदला? आज भी 32 साल, 30 साल ट्रायल आम बात है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा 1983 में जस्टिस रंगनाथ मिश्र ने मेरे केस रूदल साहा में कहा-यह कोई अकेला मुकदमा नहीं है, जहां हमें चिंता हो रही है। अभी अंखफोड़वा केस गुजरा ही है। उस भयानक मुकदमे ने हमारी आंखें नहीं खोली हैं। शायद एक ‘हरक्यूलिस’ को ढूंढना है, जो सिस्टम की धुलाई करेगा। दो नदियों की दिशा एक ओर मोड़कर, पवित्र गंगा से नहीं। हालांकि हम चाहते हैं कि राज्य के उच्चाधिकारी इस ओर अपना व्यक्तिगत ध्यान देंगे, जेलों के प्रशाशन की निद्रा तोड़ने में और घनघोर अन्याय को खत्म करने में।
2021-22 में जयपुर में एक विदेशी महिला का बलात्कार ऑटो ड्राइवर ने किया। मुकदमा हुआ तो राजस्थान हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस ने आदेश निकाला-ऐसे मामले में 30 दिनों में सजा सुनाई जाएगी। यही हुआ, पर यह इकलौता केस निकला, जैसे कि मैंने ‘जी न्यूज’ में एंकर किशोर आजवाणी को कहा। अदालतें कर सकती हैं, जब चाहें, चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया कर सकते हैं, यदि चाहें, प्रधानमंत्री, लोअर ज्यूडिशियरी, पुलिस, वकील जब चाहें तब कर सकते हैं। जल्दी न्याय कर सकते हैं कानून बनाकर। वे कानून बनाएं-टाइम बाउंड एक साल में पुलिस लोअर कोर्ट से लेकर सर्वोच्च न्यायालय तक फैसला दे फास्ट ट्रैक कोर्ट में, कैसे त्वरित, ईमानदारी से न्याय नहीं होगा। इच्छाशक्ति होनी चाहिए। मैंने खुद कहा था तिहाड़ जेल के लॉ ऑफिसर को, मुझे लिस्ट दें, छोटे मामलों के कैदियों की जो समय से ज्यादा जेल में हैं, मैं सबकी बेल एप्लिकेशन फाइल करती हूं। पूरी सजा हो गई तो रिहाई की प्रार्थना पर मुझे लिस्ट दी ही नहीं गई, मंशा ही नहीं है।

(लेखिका सुप्रीम कोर्ट की वरिष्ठ वकील हैं और ये उनके निजी विचार हैं। आपको यदि कमलेश जैन से किसी प्रकार का परामर्श लेना है तो आप उन्हें  mailnitiriti@gmail.com पर संपर्क कर सकते हैं ) 

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Kamlesh Jain

कमलेश जैन सुप्रीम कोर्ट की वरिष्ठ वकील हैं और देश में कई बड़े केस लड़ चुकी हैं। चार दशकों से भी ज्यादा समय से कमलेश जैन देश के तकरीबन सभी हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में मुकदमो की पैरवी कर चुकी हैं। महिलाओं के अधिकार और कैदियों को लेकर वो हमेशा मुखर रही हैं। कमलेश जैन नीतिरीति के लिए अपने विचार और अनुभव लिखती रही हैं।

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