नई दिल्ली, नवंबर 10 

केंद्र सरकार ने कर्नाटक हाईकोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस रितु राज अवस्थी को लॉ कमीशन का नया चेयरमैन नियुक्त किया है। वैसे सरकार ने भले ही 22वें लॉ कमीशन के गठन को मंज़ूरी दे दी हो और नया चेयरमैन नियुक्त कर दिया हो लेकिन पिछले 11 साल से सरकार लॉ कमीशन की सारी रिपोर्ट ठंडे बस्ते में ही डालती रही है। इस दौरान विधि आयोग ने कई रिपोर्ट सरकार को दी है लेकिन सरकार ने इसपर कोई कार्रवाई नहीं की। 

जस्टिस रितु रात अवस्थी और कानून मंत्री किरेन रिजिजु

साल 2011 में मनमोहन सिंह सरकार ने लॉ कमीशन की रिपोर्ट मानी थी। ये रिपोर्ट थी कि किसी भी कॉर्पोरेट मामले में कोर्ट फीस चार्ज किया जाना चाहिए।  

लॉ कमीशन के वेबसाइट से मिली जानकारी के मुताबिक 2 फरवरी 2011 को कमीशन की आखिरी रिपोर्ट लागू की गई थी। कमीशन की ये 236वीं रिपोर्ट साल 2010 में सरकार को दी गई थी। 

इसके पहले साल 2009 में लॉ कमीशन की दो रिपोर्ट लागू हुई थी। 230वीं रिपोर्ट और 231वीं रिपोर्ट जो लागू हुई थी उनमें से एक न्यायपालिका में रिफॉर्म को लेकर थी औऱ दूसरी रिपोर्ट भारतीय स्टांप एक्ट में बदलाव को लेकर। 

इसके बाद अभी तक 25 रिपोर्ट ऐसी हैं जिसे सरकार को लॉ कमीशन ने सरकार को दिया तो है लेकिन इस पर सरकार ने कोई फैसला नहीं लिया है। इसके अलावा 15 रिपोर्ट ऐसी हैं जिस पर कोई जानकारी नहीं है कि सरकार ने क्या फैसला लिया है यानी सिफारिश को स्वीकार की या नहीं। ये सारी रिपोर्ट जस्टिस बीएस चौहान के कार्यकाल के दौरान की हैं।   

साल 2016 में लॉ कमीशन के तत्कालीन चेयरमैन डॉक्टर बीएस चौहान ने यूनिफॉर्म सिविल कोड को लेकर जनता से राय मांगी थी हालांकि उस राय को लेकर जो रिपोर्ट बनी वो सरकार को भेजी गई या नहीं, इसे लेकर कोई जानकारी नहीं मिली। वैसे 211वीं रिपोर्ट और 212वीं रिपोर्ट भी इसी मुद्दे पर ही थी।  

जस्टिस बीएस चौहान , पूर्व चेयरमैन लॉ कमीशन

यूनिफॉर्म सिविल कोड को लेकर सरकारी वेबसाइट पर ऐसी कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है कि वो रिपोर्ट सरकार के पास आई थी या नहीं। जस्टिस चौहान के कार्यकाल के दौरान कुल 15 रिपोर्ट सरकार को सौंपी गई लेकिन इसमें यूनिफॉर्म सिविल कोड का कोई जिक्र नहीं है। 

जो रिपोर्ट सौंपी गई उसमें प्रमुख थीं अधिवक्ता अधिनियम, 1961 में बदलाव, हेट स्पीच, मानव डीएनए प्रोफाइलिंग, कोर्ट की अवमानना कानून की समीक्षा, बीसीसीआई बनाम आरटीआई, जुआ और खेल सट्टेबाजी और गलत अभियोजन शामिल हैं। 

इस बारे में भी कोई जानकारी नहीं है कि सरकार ने इन रिपोर्ट को स्वीकार किया या नहीं। 

हालांकि लॉ कमीशन की रिपोर्ट सरकार को मानने की बाध्यता नहीं है लेकिन ये रिपोर्ट इसलिए ज़रूरी होती हैं ताकि इसकी मदद से कानून में मौजूद खामियों को दूर किया जा सके और कानून में बदलाव किया जा सके।

19 फरवरी 2020 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में 22वें लॉ कमीशन का गठन तीन साल के लिए किया था।

 लॉ कमीशन या तो सरकार के द्वारा भेजे गए मामलों पर विचार करते के अपनी रिपोर्ट सरकार को देता है या फिर स्वत: संज्ञान लेते हुए मामलों की जांच करके अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंपता है। 

 लॉ कमीशन के चेयरमैन की कुर्सी साल 2018 से खाली थी। इसके पहले इसके चेयरमैन सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस बी एस चौहान थे जो 31 अगस्त 2018 को रिटायर हुए थे और इसके बाद से ये पद खाली था। सरकार ने 7 नवंबर 2022 को कर्नाटक हाईकोर्ट के रिटायर्ड चीफ जस्टिस रितु राज अवस्थी को लॉ कमीशन का चेयरमैन नियुक्त किया।  

जस्टिस अवस्थी ने रिटायरमेंट से पहले कर्नाटक हाईकोर्ट में हिजाब मामले की भी सुनवाई की थी और मुस्लिम लड़कियों के शैक्षणिक संस्थानों में हिजाब नहीं पहनने के फैसले को सही ठहराया था। 

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NitiRiti Bureau

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