सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात के गोधरा में साबरमती एक्सप्रेस में आग लगाने के मामले में आठ दोषियों को ज़मानत दे दी है। ये लोग आजीवन कारावास की सजा काट रहे थे। ये सारे आरोपी अभी तक करीब 18 साल की सज़ा काट चुके हैं और कोर्ट का ये फैसला इतने साल बिताने के आधार पर दिया है। 8 दोषियों को निचली अदालत और गुजरात हाई कोर्ट से उम्रकैद की सजा मिली थी।
सुप्रीम कोर्ट ने चार और दोषियों को ज़मानत नहीं दी है। इन चारों दोषियों को निचली अदालत से फांसी की सजा सुनाई गई थी। कोर्ट ने सुनवाई के दौरान कहा कि फांसी की सजा पाए चार दोषियों को छोड़कर बाकी दोषियों को जमानत दी जा सकती है।
क्या था पूरा मामला
साल 2002 में अयोध्या से आ रही कारसेवकों की एक ट्रेन की बोगी में आग लगा दी थी जिसमें 59 कारसेवकों जिंदा जला दिया गया था। इस घटना के बाद पूरे गुजरात में दंगे फैले थे। इसके बाद निचली अदालत ने मौत की सज़ा सुनाई थी और गुजरात हाईकोर्ट ने इस सज़ा को उम्रकैद में बदल दिया था। फिर ये मामला सुप्रीम कोर्ट में आया था और अदालत ने इन्हें ज़मानत दी है। इस मामले में कुल 31 लोगों को सज़ा हुई थी। निचली अदालत ने 11 लोगों को फांसी की सज़ा दी थी और बाकियों को उम्रकैद दिया था। इन सभी की अपील अब सुप्रीम कोर्ट में लंबित है।
बोगी को बाहर से बंद की, फिर लगाई आग: गुजरात सरकार
गुजरात सरकार की ओर से मुकदमे की पैरवी करने वाले सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अदालत में कहा कि बोगी को बाहर से बंद आग लगाई गई थी। इसमें महिलाओं और बच्चों समेत 59 लोगों की मौत हो गई थी। तुषार मेहता ने कहा कि ये कहा जाता है कि उनकी भूमिका सिर्फ पथराव तक ही सीमित थी लेकिन जब आप किसी डिब्बे को बाहर से बंद करके उसमें आग लगाया जाता है और फिर पथराव किया जाता है तो ये सिर्फ पथराव भर नहीं है, ये एक जघन्य अपराध है।
याचिकाकर्ताओं के वकील वरिष्ठ वकील संजय हेगड़े ने कहा कि 4 दोषियों को छोड़ कर बाकी 8 को ज़मानत दे दी जानी चाहिए क्योंकि शनिवार को त्यौहार है। अदालत ने इस दलील को मान ली।
क्यों मिली ज़मानत
इस मामले में एक अपराधी फारुक को सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल ज़मानत दिया था। उसे आजीवन कारावास की सज़ा हुई थी और सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल 15 दिसंबर को ज़मानत मिली थी। इसी आधार पर बाकी आरोपियों ने ज़मानत याचिका दाखिल की थी। राज्य सरकार की ओर से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल ने इस ज़मानत का विरोध किया था।