नीतिरीति ब्यूरो 

नई दिल्ली, 7 नवंबर 

सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक ऐतिहासिक फैसले में आर्थिक आधार पर दिए जाने वाले आरक्षण को सही ठहराया है। 5 जजों की संविधान पीठ ने 3-2 के बहुमत से संविधान के 103वें संशोधन को हरी झंड़ी दी। हालांकि अल्पमत में रहने वाले जजों में सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस उदय ललित भी थे। ये फैसला जस्टिस ललित का रिटायरमेंट से पहले आखिरी फैसलों में से एक था।  

सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद आर्थिक आधार पर सवर्णों को भी 10 फीसदी तक आरक्षण देने का रास्ता खुल गया है अगर उनकी सालाना आय 8 लाख रुपए से कम है।

अदालत के फैसले के बाद राज्य सरकारें 10 फीसदी तक आरक्षण देने के लिए कानून बना सकती हैं।  पांच में से तीन जजों ने अपने फैसले में कहा कि 103 वां संशोधन संविधान के बुनियादी ढ़ांचे का उल्लंघन नहीं करता है। यहां हम आपको बता दें कि फिलहाल देश में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और ओबीसी को मिलाकर 50 फीसदी तक आरक्षण दिया जाता है। अनुसूचित जाति को 15 फीसदी, अनुसूचित जनजाति को 7.5 फीसदी और ओबीसी को 27.5 फीसदी आरक्षण है। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद राज्य सरकारें अलग से ये आरक्षण दे सकती हैं यानी अब ये आरक्षण सीमा 60 फीसदी तक जा सकती है। हालांकि कई राज्यों ने पहले से ही 50 फीसदी से ज्यादा आरक्षण दिया हुआ है।   

वर्ष 1992 में सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसला दिया था। इंदिरा साहनी केस में सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ ने कहा था कि किसी भी सूरत में देश में आरक्षण की सीमा 50 फीसदी से ज्यादा नहीं हो सकती है।

हालांकि इस फैसले के बावजूद देश के कम से कम 8 राज्य ऐसे हैं जिन्होंने सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद 50 फीसदी से ज्यादा आरक्षण दिया है और ये मामले सुप्रीम कोर्ट में लंबित हैं।  

फैसले के पक्ष में

जिन तीन जजों ने आर्थिक आधार पर आरक्षण के पक्ष में फैसला दिया है वो हैं जस्टिस दिनेश महेश्वरी, जस्टिस बेला त्रिवेदी, और जस्टिस जे बी पार्दीवाला।

बेंच का कहना है कि 50 फीसदी की जो सीमा है वो सिर्फ दाखिला, नौकरी के लिए था और बाकी जगह पर ये लागू नहीं होता लिहाज़ा आरक्षण देने की सीमा को धारा 15(4),15(5),16(4) के अलावा बाकी जगहों पर लागू नहीं होती और इसलिए संविधान संशोधन गैरकानूनी नहीं है।

हालांकि अदालत ये भी चाहती है कि आरक्षण की व्यवस्था हमेशा के लिए नहीं हो सकती है और इसे कभी ना कभी खत्म करना चाहिए। इसके लिए भी बातचीत करने की ज़रुरत है।

फैसले के खिलाफ

जो दो जज इस कानून के खिलाफ थे वो हैं चीफ जस्टिस उदय ललित और जस्टिस रविंद्र भट्ट। उनका मानना है कि इस आरक्षण में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और ओबीसी को भी होना चाहिये क्योंकि तीनों मिलाकर देश में वो करीब करीब 82 फीसदी हैं।

सवाल-संविधान का एक सौ तीनवां संशोधन क्या है ?

जवाब- सरकार ने इसने आर्थिक आरक्षित निधि बनाने के लिए अनुच्छेद 15 और 16 में संशोधन किया। इसके लिए संविधान के अनुच्छेद 15 (6) और 16 (6) को जोड़ा गया है जो अनारक्षित श्रेणी में आर्थिक रूप से वंचित लोगों के लिए आरक्षण की अनुमति देता है।

इसके अलावा, यह उन गरीबों की मदद के लिए पारित किया गया था जो अनुसूचित जाति(SC), अनुसूचित जनजाति(ST) और (बाकी के पिछड़ा वर्ग (OBC) के लिए 50 प्रतिशत आरक्षण नीति की वजह से बाहर रह गए थे।

सवाल- आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग कैसे निर्धारित होता है ?

जवाब- आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग का निर्धारण तब होता है जब किसी परिवार की वार्षिक आय 8 लाख रुपए से कम हो और वो SC, ST, OBC के तहत मिल रहे आरक्षण का लाभ नहीं ले रहा हो। हालांकि साल 2021 में सरकार की बनाई एक कमेटी ने रिपोर्ट दिया कि जिस परिवार के पास 5 एकड़ से अधिक जमीन हो, उसे आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के दायरे से बाहर रखा जाए।

वर्ष 1992 में सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसला दिया था। इंदिरा साहनी केस में सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ ने कहा था कि किसी भी सूरत में देश में आरक्षण की सीमा 50 फीसदी से ज्यादा नहीं हो सकती है।

हालांकि इस फैसले के बावजूद देश के कम से कम 8 राज्य ऐसे हैं जिन्होंने सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद 50 फीसदी से ज्यादा आरक्षण दिया है और ये मामले सुप्रीम कोर्ट में लंबित हैं।  

सवाल- आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग को सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में 10 फीसदी आरक्षण देश में कहां कहां लागू है ?

जवाब- इस आरक्षण के जरिए देश के सभी सहायता प्राप्त और गैर सहायता प्राप्त संस्थानों में ये आरक्षण लागू होगा। अभी तक गैर सहायता प्राप्त संस्थानों में ये आरक्षण लागू नहीं होते थे। सिर्फ अल्पसंख्यक संस्थानों में ये आरक्षण का नियम लागू नहीं होगा।  

सवाल- क्या आरक्षण सिर्फ उनके लिए हो सकता है जो आर्थिक रूप से सक्षम नहीं है ?

जवाब- ये भी एक विवादास्पद मुद्दा है। वर्ष 1992 के इंदिरा साहनी मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि आरक्षण का मानदंड जाति के साथ साथ अन्य कारक होने चाहिए ना कि सिर्फ आय। इस फैसले का औचित्य यह था कि आरक्षण का उद्देश्य सदियों से जाति व्यवस्था द्वारा बनाए गए सामाजिक नुकसान को खत्म करना था, न कि आर्थिक मदद देकर सिर्फ गरीबी खत्म की जानी चाहिए।

सवाल- क्या सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग को 10 फीसदी आरक्षण से क्रीमी लेयर बाहर रहेगा

जवाब- हां, सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग को 10 फीसदी आरक्षण से क्रीमी लेयर बाहर रहेगा। 

Share.
NitiRiti Bureau

We are a handful of journalists committed to making law simpler for our readers. Law must be affordable and accessible to all. Our effort is to demystify the process for the small man so that he may be more aware and can use the information to enrich his life. Do send feedback on stories if any at editor@nitiriti.com

Leave A Reply