16 अगस्त  2023 को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने लोकसभा में 3 विधेयक प्रस्तुत किए जिनसे ब्रिटिश काल के कानूनों में आमूल-चूल परिवर्तन लाना था।  ये है इंडियन पीनल कोर्ट- 1860 (IPC-1860), इंडियन एविडेंस एक्ट-1872 तथा कोड ऑफ क्रिमिनल प्रोसीजर (CRPc)- 1898 है जो कि  क्रमश: 163 वर्ष, 151 वर्ष और  125 वर्ष पुराने हैं।

 इस  विधेयक का नाम भारतीय न्याय संहिता है । यह भारतीय दंड कानून में आवश्यक परिवर्तन करता है जो कि आज के समय में अति आवश्यक है।  अपराधों के तरीके, हथियार सब कुछ समय के बदलाव से बिल्कुल बदल गए हैं।  इलेक्ट्रॉनिक गेजेट्स हैं और Sophisticated हथियार एवं आधुनिक तरीके हैं अपराध करने के। इनसे पुराने अन्वेषण के तरीके, धीमी गति से चलती न्यायिक व्यवस्था और बढ़ी हुई जनसंख्या से इसे नहीं संभाला जा सकता है।

 इस कारण हमारी न्यायिक व्यवस्था चरमरा गई है, समाप्त प्राय है और जनता में कछुए की गति से चलता न्याय घोर असंतोष का कारण बन गया है ।

मॉब लिंचिंग के हजारों केसेज से निपटने के लिए मामूली सजा से काम नहीं चल सकता।  अपराधियों के हौसले बुलंद है, कारण वे जानते हैं कि अन्वेषण अधिकारी पर दबाव बनाया जा सकता है, अदालतों में लंबे समय तक केस की प्रक्रिया रोकी जा सकती है और गवाह अंतत: चुप किए जा सकते हैं, उन्हें मरवाया जा सकता है या वे समय के काल में समा सकते हैं। बड़े वकीलों को रखकर जमानत पर रहा जा सकता है या लंबे समय के बाद रिहाई हो जाती है।  तब तक अपराध का साम्राज्य अबाध रूप से चल सकता है या जो गरीब है वह अनादि काल तक जेलों में सड़ सकता है उसका परिवार खत्म हो सकता है जेलें ऐसे लोगों से भरी रह सकती हैं। 35 वर्षों तक रुदल साहा का जेल में रह सकता है वो भी 16 वर्ष पहले रिहाई के बाद। कोई बोका ठाकुर 35 वर्षों तक बिना ट्रायल के जेल में रह सकता है। दुनिया के सबसे पुराने अंडर ट्रायल कैदी का खिताब पा सकता है।

 नया भारतीय न्याय संहिता विधेयक 2023 मॉब लिंचिंग के लिए अधिकतम सजा फांसी की प्रस्तावित करता है। शादी का झूठा वादा कर स्त्री के साथ शारीरिक संबंध बनाने की सजा 10 साल प्रस्तावित है। यह भी प्रस्तावित है कि अपनी पत्नी,  जिसकी उम्र 18 वर्ष से कम है से बलात्कार नहीं समझा जाएगा।

नाबालिग से दुष्कर्म पर मौत की सजा मिलेगी, 3 साल में न्याय होगा।  पहचान छुपाकर यौन संबंध की सजा 7 से 10 साल की होगी।

नए विधेयक में राजद्रोह को बदल दिया गया है अब यह विधेयक पहली बार आतंक शब्द की व्याख्या करता है। अलगाववाद,सशस्त्र विरोध सरकार के खिलाफ जो देश की संप्रभुता को खतरे में डालता हो जो कि पहले अलग-अलग प्रावधानों के अंतर्गत थे उन्हें एक प्रावधान में डाल देता है।  यह विधेयक कुल 313 प्रावधानों में संशोधन करता है जो देश के आपराधिक कानूनों में क्रांतिकारी परिवर्तन लाने वाले हैं।

 कुल मिलाकर यह विधेयक हैं नागरिक सुरक्षा संहिता विधेयक 2023, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता विधेयक 2023 और भारतीय साक्ष्य विधेयक 2023।

 यह तीनों  विधेयक इंडियन पीनल कोड -1860, क्रिमिनल प्रोसीजर कोड-1898 और इंडियन एविडेंस एक्ट -1872 को प्रतिस्थापित करते हैं।

 अभी तक हमारा आपराधिक कानून अपराधी के पक्ष में था और निर्दोष के खिलाफ। इसलिए अतीक अहमद जैसे अपराधी बड़े-बड़े अपराध कर भी अरबपति एमएलए (MLA) बन कर राजभोग करते थे और उनके शिकार चूँ तक नहीं कर सकते थे।

 इन कानूनों पर अमल आते ही न्यायपालिका, कारागारों का बोझ कम हो जाएगा। अब कारागारों में अंडर ट्रायल कैदियों की संख्या कम होगी, किसी कांडा को वर्षों न्याय की प्रतीक्षा में 10 वर्ष नहीं गुजारने होंगे। अगले 10 वर्षों में अपराधियों की सजा की दर 90 फ़ीसदी हो जाएगी। आज देरी के कारण 70 से 80 फ़ीसदी अपराधी छूट जाते हैं। अब तलाशी और जब्ती की वीडियो रिकॉर्डिंग अनिवार्य होगी। नीरव मोदी वगैरह के प्रत्यर्पण कराने में मदद होगी। और अकारण केस लंबा नहीं खींचेगा और छोटे-मोटे सभी अपराधों में समरी ट्रायल का प्रावधान होगा। कुछ महीनों में ही मुकदमे का निस्तारण होगा। चोरी की संपत्ति रखना, शांति भंग करना या धमकी देने वाले मामले में संक्षिप्त कार्यवाही होगी। अकेले इस प्रावधान से 40% तक केस कम होंगे।

 90 दिनों में जांच पूरी करनी होगी । ज्यादा से ज्यादा 180 दिनों में चार्जशीट फाइल होगी, वकील दो बार से ज्यादा मामले में स्थगन आदेश नहीं ले पाएंगे। ज़्यादातर मामले इसी वजह से सालों साल खींचते हैं। इसे वकीलों का प्रिय शगल कहे तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। अदालत को भी पूरी सुनवाई (Final Hearing)के 30 दिनों के अंदर फैसला सुनाना पड़ेगा। अनंत काल तक फैसला लंबित नहीं रहेगा। छोटे-मोटे अपराधों में सामुदायिक सजा का प्रावधान होगा।

आधुनिक टेक्नोलॉजी का प्रयोग जांच में करना होगा जैसे इलेक्ट्रॉनिक, फॉरेंसिक, वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के साथ एविडेंस कलेक्ट करना तथा ई-मेल, एसएमएस (SMS) से नोटिस भेजने की व्यवस्था आदि भी शामिल किया जाएगा। इस कानून को अगले 50 वर्षों तक बदलने की जरूरत नहीं होगी।

 भारतीय न्याय संहिता में 511 की जगह 356 धाराएं होंगी। भारतीय नायक सुरक्षा संगीता में सीआरपीसी की 478 धाराओं की जगह 511 धाराएं होंगी। भारतीय नागरिक साक्ष्य अधिनियम में 167 धाराओं की जगह 170 धाराएं होंगी, डिजिटल जांच और सुनिश्चित सज़ा होगी।

 अब हम यह कह सकते हैं कि गुलामी के दिनों की न्याय प्रक्रिया समाप्त हुई और स्वाधीन होने का समय आया है। एक सही न्याय प्रक्रिया ही किसी देश को स्वाधीन होने का ठोस प्रमाण है। हमारी वर्तमान राष्ट्रपति ने इस पीड़ा को समझा, महसूस किया और इसे बदलने की अनुशंसा अपनी कुर्सी संभालते हीं की। हमारे न्यायाधीशों से, फिर सरकार से। 

यह लड़ाई मैं भी लड़ रही हूं साल 1983 से… अब एक अनुशंसा है कि इसी तरह का त्वरित न्याय हमें दीवानी कानून में भी मिले वरना पीढियां दर पीढियां मुकदमा लड़ते रहती है दूसरी दुनिया में चली जाती है पर न्याय नहीं मिलता। 

(ये लेखिका के निजी विचार हैं और लेखिका सुप्रीम कोर्ट की वरिष्ठ वकील हैं।)

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Kamlesh Jain

कमलेश जैन सुप्रीम कोर्ट की वरिष्ठ वकील हैं और देश में कई बड़े केस लड़ चुकी हैं। चार दशकों से भी ज्यादा समय से कमलेश जैन देश के तकरीबन सभी हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में मुकदमो की पैरवी कर चुकी हैं। महिलाओं के अधिकार और कैदियों को लेकर वो हमेशा मुखर रही हैं। कमलेश जैन नीतिरीति के लिए अपने विचार और अनुभव लिखती रही हैं।

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