हमें अपने माता पिता का ज़माना याद है। छोटी मोटी गृहस्थी की उलझनों पर बात होती थी, समस्याएं होती थीं, निदान निकाले जाते थे। घर मंद गति से ही, अपनी धुरी पर चलता जाता था- अनवरत- बच्चे स्कूल, कॉलेज, यूनिवर्सिटी तक जाते हुए किसी काम के योग्य होकर नौकरी या अपना व्यवसाय करने लगते। उनका शादी ब्याह भी होता । 

पर कभी भी हम इस आशंका से डरते नहीं थे कि माता पिता तलाक लेकर अलग हो जाएंगे और हम उनके जीते जी अनाथ। 

पर अब शिक्षा का प्रचार प्रसार हो चुका है। लड़के लड़की सभी पढ़ रहे हैं। उच्च से उच्च शिक्षा ले रहे हैं, सभी विभागों में कार्यरत हैं। प्रेम विवाह और परिवार-द्वारा चयनित विवाह हो रहे हैं। वेतन भी अच्छा है, जीने का स्तर ऊंचा हो गया है। 

पर विडंबना है कि मन भावनाएँ, सहनशीलता छोटे दायरे में सिमटते जा रहे हैं। यही है आंतरिक क्लेश का कारण।

और इसकी परिणति हैं अदालत की दहलीज। तलाक, घरेलू हिंसा, मासिक भत्ता या ऐलिमनी (Alimony) यानी एकमुश्त जीवन यापन के लिए बड़ी रकम।

दिल्ली के विभिन्न मध्यस्थता केंद्रों में 1500 तलाक के मामले हैं। घरेलू हिंसा और दंपतियों में मनमुटाव से बढ़ा विवाद परिवार टूटने का कारण बन गया है। मध्यस्थ अधिकारी, न्यायाधीशों के समझाने के बावजूद युगल साथ नहीं रहते, अलग हो जाते हैं। बच्चे दोनों का लाड़ प्यार, सुरक्षा से वंचित हो मानसिक ग्रंथि का शिकार हो जाते हैं। उन पर इस बात का असर शारीरिक, मानसिक और आर्थिक होता है और इससे भी ज्यादा मनोवैज्ञानिक असर होता है जो उनके व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास नहीं होने देता।

कौन है दोषी ?

आज मैं एक स्त्री होने के बावजूद पुरुषों से ज्यादा दोष स्त्रियों को देती हूँ। वे वैवाहिक जीवन में किसी तरह का समझौता नहीं करना चाहतीं। उन्हें भी पुरुषों की तरह रहना, व्यवहार करना आवश्यक लगता है। तर्क है, वे अब हर जगह बराबर है। कहीं कहीं तो उनसे बेहतर भी। यह ठीक है पर ईश्वर ने स्त्री- पुरुष की शारीरिक संरचना में कुछ अंतर किया है। मन- व्यवहार में भी। इसी आधार पर स्तीर कुछ काम ज्यादा अच्छी तरह कर सकती है और पुरुष कुछ और काम। पर उन्हें जानना चाहिए कि शिक्षा कभी भी पोस्ट या साहचर्य में आड़े नहीं आते बल्कि मदद करते हैं। उन्हें थोड़ा उदार होने की जरूरत है। मैं उन मुकदमो का वर्णन करती हूँ जो मैंने खुद किए हैं और अदालतों में उन केसों को लड़ा है।

पहला केस

पहला केस है बहरीन देश का । लड़का वहाँ का था और लड़की दिल्ली की। इकलौता लड़का पिता के साथ मिलकर बहरीन में व्यवसाय करता था। लड़की एक मॉडल थी, थर्ड पेज पर आती थी। विवाह के दो महीने बाद ही कहने लगी की तुम्हारी शादीशुदा बहन यहाँ क्यों आती है, पिता के साथ सोफे पर बैठती हैं और पिता सिर पर हाथ फेरते हैं ,यह संबंध गलत है। मैं तुम्हारी माँ की तरह घर की नौकरानी नहीं आदि आदि। दो तीन बार बहरीन गई एक दो महीनों के लिए। ज़्यादातर भारत में रहती।  पति जाने आने का खर्चा के अलावा प्रतिमाह का खर्च भी देता था। चार पांच साल बाद पति ने भारत में तलाक का मुकदमा किया, लड़की ने शर्त रखी 2 करोड़ रुपए नकद 2 करोड़ रुपए का मकान दिल्ली में। तुम बहरीन में रहो, मैं भारत में वापस, मैं यहाँ मॉडलिंग करती रहूंगी, और तलाक नहीं होगा। करीब 20 डेट पर लड़का भारत आया पर तलाक से कम उसे कुछ नहीं और लड़की को तलाक नहीं चाहिए और लड़के का साथ भी नहीं। अंतत: अदालत ने तलाक दिया और एकमुश्त पैसा दिया सिर्फ 5 लाख रुपए।

दूसरा केस

दूसरा मुकदमा । लड़की ने कई राज्यों में अलग अलग घरेलू हिंसा, मासिक खर्च, दहेज आदि के मुकदमे डाले। लड़के के खिलाफ़। तीन- चार साल दौड़ते दौड़ते लड़के ने सभी अदालतों में केस लड़ा। अंतत: दिल्ली में तलाक का मुकदमा डाला। लड़की ने इस केस को ट्रांसफर करने के लिए सर्वोच्च न्यायालय में मुकदमा डाला। मैं लड़के की तरफ से थी। अदालत ने कहा 12 साल की शादी में तीन- चार महीने साथ रहकर इतनी जगह मुकदमा क्यों? अब यही सभी मुकदमो में तलाक लें और एकमुश्त पैसे ले लें। कई बार बुलाने के बाद भी लड़की नहीं आई और अंततः अदालत ने तलाक दिया और दोनों को निचली अदालतों से अपने अपने मुकदमे वापस लेने के लिए कहा। 

कानून का गलत इस्तेमाल 

इस तरह लड़कियों का एक वर्ग भले ही कम संख्या में है लेकिन वो इसका इस्तेमाल कर रहा है। यह वर्ग शादी करता है, कुछ दिन साथ रहता है और कई मुकदमे अलग अलग राज्यों में कर मोटी रकम वसूलता है। लड़का जान छुड़ाने के लिए सब कुछ करने के लिए तैयार होता है। यूज़ ऐंड थ्रो (Use and throw) यानी ट्रायल ऐंड एरर (Trial and error) का सिद्धांत व्यवहार में लाया जाता है, जबकि यह कानून  है कि आप घरेलू हिंसा के कानून में मासिक खर्चा, तलाक अलग रहने आदि सभी मुकदमे एक साथ कर सकते हैं या तलाक के मुकदमे में ही सारी मांगे एक साथ कर सकते हैं। सर्वोच्च न्यायालय भी अपनी उदारता दिखाते हुए सभी मामलों से निस्तारण एवं तलाक एकमुश्त भत्ता देने के लिए अपने अधिकार का व्यवहार करने लगा।

Share.
Kamlesh Jain

कमलेश जैन सुप्रीम कोर्ट की वरिष्ठ वकील हैं और देश में कई बड़े केस लड़ चुकी हैं। चार दशकों से भी ज्यादा समय से कमलेश जैन देश के तकरीबन सभी हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में मुकदमो की पैरवी कर चुकी हैं। महिलाओं के अधिकार और कैदियों को लेकर वो हमेशा मुखर रही हैं। कमलेश जैन नीतिरीति के लिए अपने विचार और अनुभव लिखती रही हैं।

Leave A Reply