क्या है आर्थिक आधार पर आरक्षण ?
क्या सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में आर्थिक रुप से कमजोर वर्ग को 10 फीसदी आऱक्षण देना सही है या नहीं, देश की सबसे बड़ी अदालत की पांच जजों की संवैधानिक पीठ इसकी जांच कर रही है। लेकिन इसे लेकर विवाद क्या है और क्यों इसका विरोध होता रहा है, आज हम इसकी जांच करेंगे।

भारत सरकार ने आर्थिक रुप से कमज़ोर वर्ग को सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में 10 फीसदी आरक्षण का फैसला लिया। इसके लिए संविधान में संशोधन किया गया जिसे एक सौ तीनवां संशोधन(The Constitution (one hundred and third amendment) Act, 2019) कहा जाता है । आर्थिक आधार पर आरक्षण देने के लिए ये सविंधान संशोधन देश में पहली बार किया गया है।

संविधान का एक सौ तीसरा संशोधन क्या है ?
सरकार ने इसने आर्थिक आरक्षित निधि बनाने के लिए अनुच्छेद 15 और 16 में संशोधन किया। इसके लिए संविधान के अनुच्छेद 15 (6) और 16 (6) को जोड़ा गया है जो अनारक्षित श्रेणी में आर्थिक रूप से वंचित लोगों के लिए आरक्षण की अनुमति देता है।

इसके अलावा, यह उन गरीबों की मदद के लिए पारित किया गया था जो अनुसूचित जाति(SC), अनुसूचित जनजाति(ST) और (बाकी के पिछड़ा वर्ग (OBC) के लिए 50 प्रतिशत आरक्षण नीति की वजह से बाहर रह गए थे।

आर्थिक रुप से कमजोर वर्ग कैसे निर्धारित होता है ?
आर्थिक रुप से कमजोर वर्ग का निर्धारण तब होता है जब किसी परिवार की वार्षिक आय 8 लाख रुपए से कम हो और वो SC, ST, OBC के तहत मिल रहे आरक्षण का लाभ नहीं ले रहा हो। हालांकि साल 2021 में सरकार की बनाई एक कमेटी ने रिपोर्ट दिया कि जिस परिवार के पास 5 एकड़ से अधिक ज़मीन हो, उसे आर्थिक रुप से कमजोर वर्ग के दायरे से बाहर रखा जाए।

सवाल ये है कि आखिर इसमें विवाद क्या है ?
संविधान संशोधन कहता है कि ये आरक्षण अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और ओबीसी को नहीं मिलेगा क्योंकि उन्हें आरक्षण पहले से मिल रहा है। आरोप ये है कि ये संशोधन संविधानिक नहीं है और संविधान की बुनियादी स्वरुप के खिलाफ है।

इसके अलावा और क्या मुद्दे हैं जिसका समाधान चाहिए ?
फिलहाल भारत में जो आरक्षण मिलता है वो है 27 फीसदी ओबीसी को, 15 फीसदी अनुसूचित जाति को और 7.5 फीसदी अनुसूचित जनजाति को, जो कुल मिलाकर 49.5 फीसदी होता है। 10 फीसदी आरक्षण आर्थिक रुप से पिछड़ा वर्द को देने पर कुल योग 59.5 फीसदी होता है जो कि संविधान में बराबरी के सिद्धांत का उल्लंघन है।

वर्ष 1992 में सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसला दिया था। इंदिरा साहनी केस में सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ ने कहा था कि किसी भी सूरत में देश में आरक्षण की सीमा 50 फीसदी से ज्यादा नहीं हो सकती है।

हालांकि इस फैसले के बावजूद देश के कम से कम 8 राज्य ऐसे हैं जिन्होंने सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद 50 फीसदी से ज्यादा आरक्षण दिया है और ये मामले सुप्रीम कोर्ट में लंबित हैं।

आर्थिक रुप से कमज़ोर वर्ग को सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में 10 फीसदी आरक्षण देश में कहां कहां लागू है ?
इस आरक्षण के जरिए देश के सभी सहायता प्राप्त और गैर सहायता प्राप्त संस्थानों में ये आरक्षण लागू होगा। अभी तक गैर सहायता प्राप्त संस्थानों में ये आरक्षण लागू नहीं होते थे। सिर्फ अल्पसंख्यक संस्थानों में ये आरक्षण का नियम लागू नहीं होगा।

क्या आरक्षण सिर्फ उनके लिए हो सकता है जो आर्थिक रुप से सक्षम नहीं है ?
ये भी एक विवादास्पद मुद्दा है। वर्ष 1992 के इंदिरा साहनी मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि आरक्षण का मानदंड जाति के साथ साथ अन्य कारक होने चाहिए ना कि सिर्फ आय। इस फैसले का औचित्य यह था कि आरक्षण का उद्देश्य सदियों से जाति व्यवस्था द्वारा बनाए गए सामाजिक नुकसान को खत्म करना था, न कि आर्थिक मदद देकर सिर्फ गरीबी खत्म की जानी चाहिए।

क्या सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संसथानों में आर्थिक रुप से कमजोर वर्ग को 10 फीसदी आऱक्षण से क्रीमी लेयर बाहर रहेगा
हां, सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संसथानों में आर्थिक रुप से कमजोर वर्ग को 10 फीसदी आऱक्षण से क्रीमी लेयर बाहर रहेगा।

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NitiRiti Bureau

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