एक स्त्री बौद्ध साधु के पास गई और कहा- जब मैं 12 वर्ष की थी तो मुझे मेरे अत्यंत गरीब माता पिता ने एक वेश्यालय में बेच दिया और मुझे यह काम अब तक करना पड़ा।आप कृपया मुझे मेरे पापों के लिए माफ़ करे।

साधु ने जवाब दिया तुम्हें मुझसे माफी मांगने की कोई जरूरत नहीं। वास्तव में मुझे और इस दुनिया को तुमसे माफी मांगने की जरूरत है कि हम उतना नहीं कर पाए जिससे तुम्हारी रक्षा हो सकती। कृपया मुझे और इस दुनिया को माफ़ करो कि हम तुम्हारी रक्षा नहीं कर पाए।

दिसंबर 2022 की अखबार की रिपोर्ट है कि एक बच्चे की माँ ने एक प्रतिष्ठित स्कूल के पदाधिकारियों को ईमेल किया कि उसके बेटे का यौन शोषण स्कूल में कुछ छात्रों द्वारा हो रहा है, उसे तंग किया जा रहा है, जिसकी वजह से बेटे में आत्महत्या की प्रवृत्ति जाग रही है। इस प्रकार की यौन शोषण की बातचीत की फ़ोन रिकॉर्डिंग भी थी पर स्कूल ने इन बातों पर कोई ध्यान नहीं दिया।

अंतत: फरीदाबाद पुलिस स्टेशन पर, इन साक्ष्यों के साथ स्कूल की प्रधानाध्यापक पर मुकदमा हुआ। दसवीं कक्षा के बच्चे की आत्महत्या के कारण। बच्चे ने 24 फरवरी 2022 को आत्महत्या की। उसका यौन शोषण कक्षा आठ से 10 तक स्कूल में हुआ। यदि प्रधानाध्यापिका ने माँ के ईमेल पर ध्यान दिया होता तो ऐसा कदापि नहीं होता पर हमारे देश में बच्चों की चिंता कौन करता है? वे बेचारे निरीह है, कमजोर है, बेज़ुबान हैं, वे प्रताड़ित होते हैं, शोषित होते हैं घर में, स्कूल में, पड़ोस में, सड़क पर।

स्कूल के प्रधानाध्यापिका ने पुलिस को खबर नहीं की जो कि कानूनन उनका कर्तव्य बनता था। यह धारा 21 पोक्सो ऐक्ट के अंतर्गत एक अपराध है। 23 सितंबर को बच्चे की माँ ने स्कूल को कहा था कि तीन क्लासमेट उसके साथ यौन संबंध बनाते हैं, जबकि इसे लेकर दूसरे पांच लड़के उसका मजाक बनाते हैं। बच्चे को स्कूल के अंदर यौन  शोषण का शिकार होना पड़ता था। हेड मिस्ट्रेस ने एक महीने बाद जवाब दिया कि वे सभी पांच लड़के स्कूल छोड़कर जा चूके हैं। अतीत में उनके खिलाफ़ किसी और की शिकायत भी नहीं मिली है। जो यौन शोषण करते थे। उन्होंने अपने अभिभावकों के सामने कहा कि उन्होंने ऐसा कुछ नहीं किया अत: वे भी दोषी नहीं। अत: हेड मिस्ट्रेस ने खुद ही पुलिस, वकील, जज का कर्तव्य पूरा कर मामले को रफा-दफा कर दिया।

इस प्रकार घर में लड़कियों की, बच्चों की इस कदर बेकदरी की जाती है कि उसमें हिम्मत नहीं होती कि वे अपने यौन शोषण की बात माता-पिता से कह सकें। कह भी दे तो उन्हें इस विषय पर चुप रहने के लिए कहा जाता है, वे खुद भी कोई ऐक्शन नहीं ले पाते है।

माँ बाप, स्कूल टीचर्स इन घटनाओं को छुपाते हैं, बच्चों की समस्या उन्हें ही हल करने के लिए बाध्य करते हैं। इससे घबराकर बच्चे आत्महत्या जैसे कदम उठा लेते हैं। राजधानी के एक सरकारी स्कूल में शिक्षिका द्वारा बच्ची को पहली मंजिल से नीचे निचली मंजिल पर फेंकना, नाजुक अंगों का अंग भंग भी करना आदि घटनाएं प्रकाश में आती रहती है।

घर पर भी बात-बात में चार-पांच वर्ष के बच्चों को माता-पिता द्वारा पीटना आम बात है। कभी कभी ऐसा भी देखा गया है कि माता दूसरे का गुस्सा बच्चों को पीटकर निकालती है। वास्तव में बच्चों को पीटना बड़ो का जन्मसिद्ध अधिकार सा लगता है।

एक तो भारत में बच्चों पर अत्याचार के मामले रिपोर्ट कम होते हैं और होते भी है तो कानून कम सख्त हैं। विदेशों में बच्चों के अधिकार विस्तृत हैं और उनकी समुचित देखभाल यहाँ की अपेक्षा वहाँ ज्यादा अच्छी है।

बच्चों के यौन प्रताड़ना और यौन शोषण पर अब पोक्सो एक्ट है, जो ज्यादा सख्त हैं और ठीक से एफआईआर फाइल करने और पुलिस तथा अदालत द्वारा सही प्रक्रिया अपनाने पर बच्चों का मानसिक दबाव कम किया जा सकता है। उनके प्राइवेट अंगों को छूना तक अपराध की श्रेणी में आ गया है। उसी तरह बच्चों के लिए मुफ्त एवं अनिवार्य शिक्षा कानून 2009 है। उन्हें मुफ्त एवं अनिवार्य शिक्षा प्रदान करना, उसकी सुविधा प्रदान करना केंद्र सरकार का काम है। बच्चे की उम्र 6 से 12 वर्ष होनी चाहिए।

बच्चों का विवाह लड़की 18 वर्ष  के कम, लड़का कम से कम 21 वर्ष से पहले नहीं होना चाहिए। इससे कम उम्र में विवाह करवाने की सजा दो वर्ष तथा ₹1 लाख रुपए तक का जुर्माना है।

बच्चों द्वारा काम करवाना भी 1986  से ही अपराध है।इसके लिए ‘चाइल्ड लेबर प्रोहिबिशन ऐंड रेग्युलेशन ऐक्ट’ है, पर इसका उल्लंघन घरों में, होटलों में, स्टेशन पर हर जगह होता है और यह बिना रुके चलता ही रहता है। यहाँ बच्चा वह जिसकी उम्र 14 वर्ष से कम है, हल्के फुल्के और सेफ जगहों पर वे कुछ शर्तों के साथ काम कर सकते हैं। पर इसका उल्लंघन भी होता रहता है। जिन घरों में लड़कियां पसंद नहीं की जाती वहाँ उनका भ्रूण हत्या से लेकर लड़कों की तुलना में उनका लालन पालन, शिक्षा,व्यवहार सभी दोयम दर्जे का हो जाता है। इस पर घर के सभी सदस्यों को ध्यान देना चाहिए।

ध्यान देने पर लड़कियां काफी मेधावी, मेहनती और किसी भी क्षेत्र में जाने लायक हो जाती है। इस पर घर, समाज, स्कूल का पूरा ध्यान, ख्याल रखना पड़ता है। बालकों पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए। उनका यौन शोषण, बाहर बाल शोषण, घर से, स्कूल से लेकर सड़कों तक भी हो सकता है,  होता है। इन्हें प्यार से निगरानी में रखना सबका कर्तव्य है। बच्चे राष्ट्र की धरोहर है। किसी को भी उन पर अत्याचार होने पर रिपोर्ट करने की जिम्मेदारी है।कहीं पर भी बच्चा प्रताड़ित होता है तो आम आदमी भी ऐक्शन ले सकता है। आये दिन बाल नौकर, नौकरानी को प्रताड़ित होते देखने से अच्छा है रिपोर्ट करें और उन्हें बचाएं।

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Kamlesh Jain

कमलेश जैन सुप्रीम कोर्ट की वरिष्ठ वकील हैं और देश में कई बड़े केस लड़ चुकी हैं। चार दशकों से भी ज्यादा समय से कमलेश जैन देश के तकरीबन सभी हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में मुकदमो की पैरवी कर चुकी हैं। महिलाओं के अधिकार और कैदियों को लेकर वो हमेशा मुखर रही हैं। कमलेश जैन नीतिरीति के लिए अपने विचार और अनुभव लिखती रही हैं।

2 Comments

  1. Roop Singh Chandel on

    कमलेश जैन जी का आलेख ‘बच्चे और उनका यौन शोषण’ सामयिक और अत्यंत महत्वपूर्ण है। बच्चे देश की धरोहर हैं और उनकी प्रताड़ना/शोषण भयानक अपराध हैं जिसकी कठोर सजा दी जानी चाहिए। कानून का कठोरता से पालन किया जाना चाहिए।

    इस आलेख के लिए कमलेश जी को हार्दिक बधाई।

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