राजधानी दिल्ली के, कंझावला थाना क्षेत्र के, पुटकला गांव में, दो बच्चियां पैदा होने से गुस्साए पिता द्वारा उन्हें मारकर दफनाने जाने का मामला प्रकाश में आने के बाद हर कोई सन्न है।

बच्चियों की माँ ने पुलिस में मामला दर्ज कराने पर पुलिस ने एसडीएम की अनुमति लेकर दफनाई गईं बच्चियों के शव को, श्मशान घाट से निकाल कर पोस्टमॉर्टम के लिए भेजा। इनकी माँ रोहतक की पूजा थी। अस्पताल में बच्चों का जन्म हुआ। पति नीरज सोलंकी अस्पताल पहुंचा और बच्चों को लेकर फरार हो गया। बाद में उनकी हत्या कर, श्मशान में दफना कर, फरार हो गया।आरोपी के परिजन उसके साथ थे और वे भी उसके साथ फरार हो गए।

भारत के कई इलाके इस तरह की नृशंस हत्या के लिए बदनाम है। उनके लिए लड़की आज भी सिर्फ एक फायदे- नुकसान की वस्तु है।काम आती है तो ठीक है वरना पैदा होने लायक ही नहीं है।

विज्ञान की वजह से पेट के अंदर ही लड़का है या लड़की, भ्रूण टेस्ट के द्वारा पता कर लिया जाता है और लड़की होने पर मार दी जाती है। मैंने जब वकालत शुरू की,  पटना में तब से मेरे पास 40- 42 वर्ष की उम्र में एक स्त्री आयी।जान पहचान होने पर कहा कि मैं जब छोटी थी तो मैं अपनी दादी द्वारा पाली गई थी , कारण ये था कि मेरी माँ मुझे जन्म देते ही सात आठ महीने के बाद ही मर गयी थी। पिता ने दूसरी शादी कर ली थी। मुझे दादी बताया करती थी कि हमारे जमाने में पहली बेटी को जन्म देते ही मार दिया करती थी। मैंने पूछा क्या कैसे?  तो उन्होंने मारने के कई तरीके बताए। कहा, उस समय दाई आती थी, जो बच्चा जनने के लिए,  गांव में अस्पताल भी नहीं थे.. कम सुविधाएं थी, बेटियों को मारने के लिए यदि कोई पोखर होता, सूखा कुआं होता, जिसमें पानी कम, कूड़ा करकट ज्यादा होता, उसमें बेटियों को मार देते या फेंक देते थे। ऐसा कुछ ना होता तो खाट के पाए के नीचे गर्दन दे देते थे, कहीं कहीं मुँह को नमक से भर देते थे आदि आदि। मैं इन भयानक तरीकों को जान सिहर गई। वो स्त्री अब किस्से सुनाने में रुचि लेने लगी थी, लगातार प्रसन्न नजर आ रही थी। फिर उसने रस लेते हुए कहा कि मेरी भी शादी हुई। 14 वर्ष की उम्र में, गौना हुआ। 16 वर्ष में ससुराल आयी जल्दी ही गर्भवती हो गई। फिर रस्म के अनुसार मायके गई। मुझे लड़की हो गयी मैंने उसी किसी तरह सवा साल का किया फिर मिट्टी वगैरह खिलाया, दूध न पिला कर भूखे मार दिया, मैं खुश थी की मेरी पहली संतान लड़की नहीं है। मैं ससुराल आई। दूसरी बार गर्भवती हुई सोचा लड़का ही होगा, मेरी आन बान और शान ससुराल में स्थापित हो जाएगी, पर फिर भी लड़की हो गयी, मेरा दिल ही टूट गया।

पहली बार तो मायके में थी, कोई ध्यान देनेवाला ना था। मैं जो चाहे वो कर सकती थी पर अब मैं भरी पूरी ससुराल में थी। पर यह अच्छी जगह थी कि एक वजह से। दूसरी ओर। देवरानी यानी मैं  और जेठानी का परिवार था, दो मंजिले मकान पर था, नीचे चक्की थी, घर में ही अनाज मसाला पीसा जाता था, मेरी बेटी किनारे पर आ जाती और मैं उसे धीरे से नीचे धकेल देती, वह चक्की पर गिर गई एक बार, दो बार। कभी दो दाँत के ऊपर से निकल गए थे तो कभी गिरी और दोनों दांत नीचे के होठ काट कर निकल गए। दो स्टिच लगाने पड़े। इसी तरह मैंने सुना है की अगर लड़की का बायां अंग दाग दिया जाए, तो फिर बेटा ही होता है। मैंने लड़की का पूरा अंग स्क्रू से काटकर क्षत-विक्षत कर दिया । वैसे तो मेरे पति मुझे बहुत प्यार करते थे, पर वह मेरी बेटी को भी प्यार करते थे। वे नौकरी की तलाश करने कई जगह गए। इसी क्रम में मुझे जब मौका मिला मैंने उसे एक कम पानी वाले कुएं में ढ़केल  दिया ताकि वह मर जाए और मुझे दूसरा लड़का हो जाए।  कारण ये भी था कि मुझे एक बेटा हो ही चुका था पर वो बड़ी ही किस्मत वाली निकली और लोगों ने उसे कुएं से बाहर निकाल दिया। फिर भी मैंने उसे पग पग पर प्रताड़ित किया। मारा, पीटा, अत्याचार किया पर वो अपने पिता की लाडली रही। वो बचती रही। मैं अचम्भित रही उस स्त्री पर। मैंने पूछा आपको अपराध बोध नहीं है? आप तो खुद स्त्री है, जीवन का आनंद ले रही है।उसने कहा नहीं, बिल्कुल नहीं। वो ऐसे हँसी जैसे वह विश्व विजेता है।

इसी प्रकार एक पड़ोस की 50-60 वर्षीया स्त्री आयी। उसने कहा, मैं अपनी बहू से दुखी हूँ, तलाक दिलाना चाहती हूँ। मैंने कहा कारण बताया तो उसने कहा आप कानून देखकर बताएं कि किन किन कारणों से तलाक होता है। मैंने नयी वकालत के भोलेपन ने बताया कि कई कारणों में से एक कारण चरित्रहीनता भी है। ये सुनते ही वो खुश हो गईं और कहा, यही लगा दीजिए.. मैंने कहा क्या सचमुच वह है तो उसने जवाब दिया- है तो नहीं पर लगा दीजिए । मैंने कहा कि किसी पर झूठा आरोप नहीं लगा सकती।

कुल मिलाकर आज लड़कियां भी काफी तंग करने लगी हैं।

(लेखिका सुप्रीम कोर्ट की वरिष्ठ वकील हैं और ये उनके निजी विचार हैं) 

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Kamlesh Jain

कमलेश जैन सुप्रीम कोर्ट की वरिष्ठ वकील हैं और देश में कई बड़े केस लड़ चुकी हैं। चार दशकों से भी ज्यादा समय से कमलेश जैन देश के तकरीबन सभी हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में मुकदमो की पैरवी कर चुकी हैं। महिलाओं के अधिकार और कैदियों को लेकर वो हमेशा मुखर रही हैं। कमलेश जैन नीतिरीति के लिए अपने विचार और अनुभव लिखती रही हैं।

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