नीतिरीति ब्यूरो 

नई दिल्ली

सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक ऐतिहासिक फैसले में कहा है कि एक विवाहित महिला अपने पति से बलात्कार का शिकार होती है और उसकी वजह से वह गर्भवती होती है तो उसे उस गर्भ को बगैर किसी के इजाज़त के गिराने का अधिकार है।  

जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली तीन जजों की बेंच ने कहा कि पति या साथी की हिंसा आज एक वास्तविकता है और ये बलात्कार का रूप ले सकती है जिससे एक महिला गर्भवती हो जाती है।

अदालत की यह टिप्पणी काफी महत्वपूर्ण है क्योंकि भारतीय कानून भारतीय दंड संहिता यानी IPC की धारा 375 के तहत विवाह के बाद जबरदस्ती को बलात्कार के रूप में नहीं मानता है।

IPC की इस विवादित धारा को भी अदालत में चुनौती दी गई है और संविधान पीठ द्वारा इस मुद्दे की सुनवाई की उम्मीद है।

मेडिकल टर्मीनेशन ऑफ प्रेगनेंसी 2021 यानी एमटीपी एक्ट के तहत, एक महिला बलात्कार होने पर 24 सप्ताह तक गर्भपात कर सकती है।

 ये कानून कहता है कि बलात्कार या गर्भनिरोधक उपायों की विफलता के कारण किसी भी गर्भवती महिला के मानसिक स्वास्थ्य के लिए गंभीर चोट के रूप में माना जाएगा।

सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले ने बलात्कार की परिभाषा के दायरे को बढ़ाकर पतियों द्वारा बलात्कार या यौन उत्पीड़न को भी शामिल कर लिया है।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एमटीपी कानून और उसके किसी भी नियम और कायदे में बलात्कार की परिभाषा के दायरे में वैवाहिक बलात्कार भी आएगा। इस कानून की कोई और व्याख्या करने का मतलब ये होगा कि किसी महिला पर इसलिए दबाव डालना ताकि वो उस व्यक्ति के बच्चे को जन्म दे सके जिसने उसको मानसिक और शारीरिक प्रताड़ना दी ।  

तीन जजों की बेंच में से बाकी दो जज जस्टिस ए एस बोपन्ना औऱ जस्टिस जे बी पारदीवाला हैं।  

 सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का मतलब होगा कि एक महिला को यौन उत्पीड़न, बलात्कार या अनाचार साबित करने के लिए कानूनी सहारा लेने की आवश्यकता नहीं होगी। ,

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में अहम बात ये भी लिखी है कि “एक महिला अपने पति द्वारा उस पर किए गए गैर-सहमति से संभोग के परिणामस्वरूप गर्भवती हो सकती है और  “हम जानते हैं कि अंतरंग साथी द्वारा की गई हिंसा एक वास्तविकता है और बलात्कार का रूप ले सकती है।

कोर्ट ने कहा है कि “यह गलत धारणा है कि अजनबी विशेष रूप से या सिर्फ वही सेक्स और लिंग-आधारित हिंसा के लिए जिम्मेदार हैं।

परिवार के संदर्भ में लिंग और लिंग आधारित हिंसा (सभी रूपों में) लंबे समय से कई महिलाओं के जीवित अनुभवों का एक हिस्सा रही है।

1971 के एमटीपी एक्ट और संशोधित 2021, दोनों ही  कानूनों के तहत एक महिला 20 सप्ताह के भीतर गर्भपात कर सकती है लेकिन इसके लिए शर्त ये है कि एक चिकित्सक प्रमाणित करेगा कि इस गर्भपात से महिला के जीवन या मानसिक या शारीरिक स्वास्थ्य के लिए खतरा नहीं है या बच्चे में असामान्यताएं विकसित नहीं हो सकती हैं।

एक महिला 20 से 24 सप्ताह के बीच गर्भपात भी कर सकती है यदि दो चिकित्सक ऐसा प्रमाणित करते हैं। 

हाल में सुप्रीम कोर्ट ने ये साफ किया था कि 2021 का कानून विवाहित और अविवाहित, दोनों ही प्रकार की महिलाओं के लिए है, जबकि पहले 1971 का कानून केवल विवाहित महिलाओं को ये अधिकार देता था।

सुप्रीम कोर्ट ने इस दायरे को अब औऱ आगे बढा दिया है कि एक महिला को बच्चे को रखने या न रखने के बारे में निर्णय लेने की पूरी स्वायत्तता है।

देश की सबसे बड़ी अदालत, दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ याचिका पर सुनवाई कर रही थी जिसमें हाईकोर्ट ने एक अविवाहित महिला को 24 सप्ताह से पहले गर्भपात की अनुमति देने से इनकार कर दिया था।

15 जुलाई, 2022 के हाईकोर्ट के इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी। 

25 साल की यह महिला मणिपुर की रहने वाली है और दिल्ली में रहती है। वह अविवाहित है और पांच भाई-बहनों में सबसे बड़ी है। उसके माता-पिता किसान हैं।

उस महिला ने इस आधार पर गर्भपात की मांग की कि उसके साथी ने अंतिम समय में उससे शादी करने से इनकार कर दिया था और वह इससे जुड़े “सामाजिक कलंक और उत्पीड़न” का सामना नहीं करना चाहती है।

उन्होंने कहा कि उसके पास कोई आय का साधन नहीं है और “एक अविवाहित मां के रूप में बच्चे को पालने” के लिए मानसिक रूप से तैयार नहीं थी।  

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NitiRiti Bureau

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