आज हम बात करेंगे भारत के सबसे ज्वलंत और प्रमुख मुद्दे की…  यानी समान नागरिक संहिता.. इसे अंग्रेजी में कहते हैं Uniform Civil Code.. इसका जिक्र आपने कई बार सुना होगा लेकिन ये क्या है, कैसे काम करता है…. इसके होने या नहीं होने से आपकी और हमारी जिंदगी में क्या फर्क पड़ता है.. ये सारी बातें आप मेरे साथ जानेंगे.. लेकिन सबसे पहले जानिये कि समान नागरिक संहिता या Uniform Civil Code  क्या है.. 

भारत में अलग अलग धर्मों को लेकर अलग अलग कानून हैं जैसे विवाह संबंधित कानून, तलाक के कानून, रखरखाव, गोद लेने को लेकर कानून, विरासत और उत्तराधिकार को नियंत्रित करने वाले कानून.. 

इन सभी कानूनों को मिलाकर एक कानून करने की कोशिश कई सालों से की जाती रही है और इसे ही समान नागरिक संहिता या Uniform Civil Code का नाम दिया जाता है। 

इस कानून के लागू होने के बाद भारत में रहने वाले सभी धर्मों के लोगों को एक ही कानून से अपने मामलों को निपटाने की आजादी होगी.. 

इससे पहले कि हम आगे बढें, यहां हम आपको यहां हम पांच-छ पर्सनल लॉ के बारे में बताते हैं जो अलग अलग धर्मों के हैं.. 

पहला कानून है भारतीय ईसाई विवाह अधिनियम 1872… ये ईसाई धर्म के लोगों के विवाह, तलाक इत्यादि के लिए लागू होता है ।

दूसरा है कोचीन ईसाई नागरिक विवाह अधिनियम 1920… ये कानून केरल के त्रावणकोर-कोच्चि के कुछ क्षेत्रों के लिए लागू है ।

तीसरा कानून है सिख विवाह के लिए साल 1909 में बना आनंद विवाह अधिनियम । 

चौथा लेकिन भारत के लिए सबसे अहम कानून है मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरिया) एप्लीकेशन एक्ट, 1937.. इसके ज़रिए शरिया कानूनों को भारतीय मुसलमानों पर लागू किया जाता है, इस पर हम आगे बात करेंगे.. 

पांचवा कानून है  पारसी विवाह और तलाक अधिनियम, 1937 

देश की सबसे बड़ी आबादी के लिए जो कानून है वो है  हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 इसे Hindu Marriage Act 1955… 

ये कानून हिंदुओं, बौद्ध धर्म के लोगों पर और जैनियों पर लागू होता है… इसके साथ साथ किसी भी ऐसे व्यक्ति पर लागू होता है जो मुस्लिम, ईसाई, पारसी या यहूदी नहीं है और जो किसी अन्य कानून के दायरे में नहीं आता है। 

तो ये 6 अलग अलग धर्मों के कानून है जिसके बारे में आपने जाना .. इन कानूनों को एक साथ लाने की मांग सालों से चली आ रही है और लगातार इसका विरोध होता आ रहा है ।

क्या यूनिफॉम सिविल कोड लागू करना इतना मुश्किल है, इसका विरोध क्यों हो रहा है और कौन कर रहा है । ये भी आपको जानना चाहिए..

भारत में मुस्लिम आबादी करीब 20 करोड़ से भी ज्यादा है और मुस्लिम समुदाय का कहना है देश के संविधान के अनुच्छेद 15 और 25 के तहत उन्हें अपना धर्म मानने की आजादी है और सरकार उसे नहीं छीन सकती । 

मुस्लिम समुदाय ये भी मानता है कि सरकार द्वारा इसके ज़रिए मुसलमानों में हिंदू धर्म थोपने की कोशिश की जाएगी।     

कानून बने या ना बने इसे लेकर लोगों के अपने अपने तर्क हैं। 

कानून के पक्ष में तर्क

लोग इसके पक्ष में हैं वो कहते हैं कि यह देश के धर्मनिरपेक्षता को मजबूत करेगा, देश में एकता आएगी। 

अलग अलग कानूनों की वजह से जो अलगाव है वो दूर होगा और भारतीय कानूनी प्रणाली को सरल करेगा । 

इससे भी ज्यादा महिलाओं की स्थिति में बेहतरी आएगी, तलाक और रखरखाव पर व्यक्तिगत कानूनों के बारे में महिलाओं के खिलाफ पूर्वाग्रहों को भी दूर करेगा।

कानून के विरोध में तर्क

विरोध करने वालों का अलग तर्क है कि यूनिफॉर्म सिविल कोड धार्मिक मामलों में राज्यों के अधिकार में दखल होगा, भारत में ये मान्य नहीं होना चाहिए। 

धर्म, जाति, नस्ल आदि की विविधता के कारण, समान नागरिक संहिता को लागू करना व्यावहारिक रूप से संभव नहीं होगा ।

और सबसे पहले भारत के सभी धर्मों और समुदायों को विश्वास में लेना आवश्यक है।

भारत का सुप्रीम कोर्ट कई बार ये कह चुका है कि देश में समान नागरिक संहिता लागू करने का समय आ गया है..

हालांकि कुछ साल पहले कांग्रेस के कानून मंत्री रहे वीरप्पा मोईली ने भारत में इसे लागू करना मुमकिन नहीं है। मोइली का ये भी कहना था कि भारत में करीब 300 से ज्यादा पर्नसल लॉ हैं जिसे एक साथ करना संभव नहीं है।  

दूसरी ओर कम से कम तीन बार सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि देश में समान नागरिक संहिता लागू होनी चाहिए । ऐतिहासिक शाहबानो केस जिसमें कोर्ट ने मुस्लिम महिला को गुजारा भत्ता का अधिकार दिया था.. ऐसे ही दो और मामले थे ।

लॉ कमीशन ने इस पर अपनी रिपोर्ट दी और कहा इसकी जरुरत नहीं है और जो वर्तमान कानून हैं उस में बदलाव करके काम चलाया जा सकता है ।

दुनिया के बाकी देशों में क्या है ?

यहां आपको ये भी जानना चाहिए कि भारत में तो ये स्थिति है लेकिन दुनिया के दूसरे देशों में ऐसे कानून को लेकर क्या हाल है और कहां क्या है ?

ज्यादातर यूरोपीय देशों में सभी लोगों के लिए एक नागरिक संहिता है और अल्पसंख्यकों सहित सभी लोग इसी नियम के अधीन हैं।  इस civil code में वो सारे कानून शामिल है जो नागरिक संबंधों को आपस में नियंत्रित करते है हालांकि इसमें कुछ अपवाद भी हैं ।

कई इस्लामिक देश जैसे सीरिया, ट्यूनीशिया, मोरक्को, पाकिस्तान, ईरान ने अपने व्यक्तिगत कानूनों को आधुनिक सामाजिक आवश्यकताओं के अनुरूप ढालने की कोशिश की है और उसको कोडिफाई (codify)  किया है। 

उदाहरण के लिए, ट्यूनीशिया और तुर्की में बहुविवाह को पूरी तरह से प्रतिबंधित कर दिया गया है, लेकिन सीरिया, मोरक्को, मिस्र, जॉर्डन, ईरान और पाकिस्तान में इसे कुछ शर्तों के साथ लागू किया है।

अब वापस भारत की बात, भारत में इस कानून… भारत में कानून के जानकार मानते हैं देश में समान नागरिक संहिता लागू होने से महिलाओं और बच्चों को काफी फायदा मिलेगा हालांकि कई ऐसा नहीं मानते हैं।

साल 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले बीजेपी सरकार के लिए ये एक तुरुप का पत्ता है क्योंकि जब ट्रिपल तलाक पर कानून के जरिए रोक लगी थी तो जानकार मानते हैं कि इसका सीधा फायदा बीजेपी को मिला था। मुद्दों की तलाश कर रहे 2024 के चुनाव के लिए ये एक संजीवनी भी हो सकता है।    

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Shailesh Ranjan

Shailesh Ranjan, editor, Nitiriti, was formerly editor Input, Zee News editorial division. He was heading Newsroom operations and digital content team. He has covered the Supreme Court, Delhi High Court for well over a decade. He has also worked with Doordarshan, Aaj Tak and Sahara TV. In his 22 years of experience in TV and digital media, he has managed a team of 50 reporters and 500 freelance news reporters. You can write in to him with opinions, articles and criticism if any at editor@nitiriti.com https://www.youtube.com/channel/UCNsPoGEpKPNX3DvdGp6AGiw

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