Author: Kamlesh Jain

कमलेश जैन सुप्रीम कोर्ट की वरिष्ठ वकील हैं और देश में कई बड़े केस लड़ चुकी हैं। चार दशकों से भी ज्यादा समय से कमलेश जैन देश के तकरीबन सभी हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में मुकदमो की पैरवी कर चुकी हैं। महिलाओं के अधिकार और कैदियों को लेकर वो हमेशा मुखर रही हैं। कमलेश जैन नीतिरीति के लिए अपने विचार और अनुभव लिखती रही हैं।

समान नागरिक संहिता यानी यूनिफॉर्म सिविल कोड (UCC) की चर्चा अक्सर होती है और थम जाती है। यहां ‘समानता’ का अर्थ है- शादी, तलाक, वारिस और गोद लेना, इनमें संपूर्ण भारत भर में, सभी धर्मों में, एक कानून का होना। संविधान की प्रस्तावना में हम व्यक्तिगत सम्मान के साथ भ्रातृत्व एवं राष्ट्र की एकता का समावेश चाहते हैं। 1976 में हमने प्रस्तावना को बदल कर कहा- ‘व्यक्ति की गरिमा, राष्ट्र की एकता और अखंडता सुनिश्चित करने वाली बंधुता बढ़ाने के लिए” (पहले था भारत की अखंडता)। पूर्व चीफ जस्टिस गजेन्द्र गडकर ने कहा, एक नए ‘सेकुलर सोसल आर्डर’ को प्राप्त…

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वकालत में हमेशा कानूनी मुद्दों से बात नहीं बनती। कारण है न्यायाधीश भी आखिर हमारे आपके जैसे होते है। इसी परिवेश समाज से आते हैं। जब बातें सीधी तरह समझाई नहीं जा सकतीं तो उन्हें व्यवहार ज्ञान समझाया जाता है। जैसे रामकृष्ण परमहंस जी पढ़े लिखे नहीं थे, वे अपनी गूढ़ बातें, साधारण रोज़मर्रा की घटनाओं, व्यवहार से इतनी अच्छी तरह समझा देते कि कोई भी व्यक्ति उसे समझ ही जाता। जैसे उन्होंने कहा- एक किसान ने सारा दिन गन्ने के खेत में पानी सींचने के बाद जाकर देखा खेत में बूंद भर भी पानी नहीं पहुंचा है। खेत में…

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पहली मई को सर्वोच्च न्यायालय की पांच जजों की संविधान पीठ ने शिल्पा शैलेश और वरुण श्रीनिवासन के मुकदमे में पति-पत्नी के बीच वर्षों से चली आ रही उलझनों का स्थायी निवारण कर दिया। इसके साथ तीन और पति-पत्नी (नीति मालवीय बनाम राकेश मालवीय, अंजना किशोर बनाम पुनीत किशोर, और मनीष गोयल बनाम रोहिणी गोयल) के मुकदमों का भी फैसला सुनाया गया। कुल 61 पृष्ठों में आए इस निर्णय से तलाक आसान बनाने की दिशा में उल्लेखनीय कदम बढ़ाए गए हैं।वैवाहिक मामलों में दरार पिछले दो-ढाई दशकों में बढ़ी हैं। इस दरम्यान संसद से नए-नए कानून बने, जिनकी वजह से…

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हमें अपने माता पिता का ज़माना याद है। छोटी मोटी गृहस्थी की उलझनों पर बात होती थी, समस्याएं होती थीं, निदान निकाले जाते थे। घर मंद गति से ही, अपनी धुरी पर चलता जाता था- अनवरत- बच्चे स्कूल, कॉलेज, यूनिवर्सिटी तक जाते हुए किसी काम के योग्य होकर नौकरी या अपना व्यवसाय करने लगते। उनका शादी ब्याह भी होता । पर कभी भी हम इस आशंका से डरते नहीं थे कि माता पिता तलाक लेकर अलग हो जाएंगे और हम उनके जीते जी अनाथ। पर अब शिक्षा का प्रचार प्रसार हो चुका है। लड़के लड़की सभी पढ़ रहे हैं। उच्च…

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एक स्त्री बौद्ध साधु के पास गई और कहा- जब मैं 12 वर्ष की थी तो मुझे मेरे अत्यंत गरीब माता पिता ने एक वेश्यालय में बेच दिया और मुझे यह काम अब तक करना पड़ा।आप कृपया मुझे मेरे पापों के लिए माफ़ करे। साधु ने जवाब दिया तुम्हें मुझसे माफी मांगने की कोई जरूरत नहीं। वास्तव में मुझे और इस दुनिया को तुमसे माफी मांगने की जरूरत है कि हम उतना नहीं कर पाए जिससे तुम्हारी रक्षा हो सकती। कृपया मुझे और इस दुनिया को माफ़ करो कि हम तुम्हारी रक्षा नहीं कर पाए। दिसंबर 2022 की अखबार की…

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यूनिफार्म सिविल कोड या कॉमन सिविल कोड यानि समान नागरिक संहिता का अर्थ है ऐसे कानून जो सभी नागरिकों (स्त्री पुरुष) के लिए समान हों। भारतीय संविधान का अनुच्छेद 44 अनुशंसा करता है कि भारत की सारी जनता एक कानून के तले रहे जहां जीवन जीने के नियम एक से हो, कोई भेदभाव न हो, जीवन सरल हो। विवाह, संपत्ति, उत्तराधिकार आदि के नियम एक हों। व्यक्तिगत धार्मिक अधिकार और सामाजिक संरचना अत्यधिक भेदभाव पर आधारित है और यह सबसे ज्यादा प्रभावित करता है एक स्त्री को। युगों-युगों तक स्त्री को धर्म और समाज के बंधनों में जीना पड़ा है।…

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वैवाहिक संबंधों की पुनर्वापसी का अर्थ है- ऐसे पति-पत्नी के संबंधों की वापसी जो किसी भी वजह से अलग-अलग रहे हैं। जब कोई पक्ष वापस संबंध में आना चाहता है तो वह हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 9 के तहत निचली अदालत में याचिका दायर कर प्रार्थना करता है कि उसे दूसरे पक्ष के साथ रहने की आज्ञा दी जाय। ऐसी व्यवस्था, पहले न तो हिन्दुओं में थी और न ही मुस्लिम लॉ के अंतर्गत। इस कानून को पहली बार ब्रिटिश कानून ने भारतीयों में हिंदू समुदाय के ऊपर लागू किया। इंग्लैंड में यह तब था जब वहां सामंतवादी प्रथा…

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भारत की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू का संवेदनशील‚ भावुक कर देने वाला सर्वोच्च परिसर में दिया जाने वाला भाषण मुझे बहुत कुछ याद दिला गया। जब राष्ट्रपति को गवर्नर बनाया गया तो उन्हें उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के साथ वार्ता करने का मौका जब मिला–तो उन्होंने जेल में बंद पड़े कैदियों की हालत पर बातचीत की। छोटी–छोटी धाराओं में लोग जेलों में बंद हैं‚ पर उनकी जमानत नहीं होती। होती भी है तो रिहाई नहीं हो पाती। कभी–कभी तो मुकदमे से बरी हो जाने पर भी जेल अधिकारी उन्हें जेल से निकालना भूल जाते हैं। न तो घर पर कोई है–वकील को…

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(कमलेश जैन, वरिष्ठ अधिवक्ता, सुप्रीम कोर्ट) हमें पता है कि कार्यालय या न्यायालयों का कामकाज अपनी भाषा में हो तो काफी समस्याएं कम हो सकती हैं लेकिन विडंबना है कि भारतीय उच्च न्यायालयों और सर्वोच्च न्यायालय की भाषा आज भी अंग्रेजी ही है। अभी देश के न्यायालयों में मुकदमो का जो अंबार लगा है उन्हें निबटाने में 100 से 150 वर्ष लग सकते हैं। नए मुकदमे की तो बात ही न की जाए तो अच्छा है। एक-एक मुकदमे के निपटारे में कई दशक लग जाते हैं। इसके कई कारण हैं, जैसे न्यायाधीशों की चयन प्रक्रिया का पारदर्शी न होना, कुछ…

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