Author: Kamlesh Jain

कमलेश जैन सुप्रीम कोर्ट की वरिष्ठ वकील हैं और देश में कई बड़े केस लड़ चुकी हैं। चार दशकों से भी ज्यादा समय से कमलेश जैन देश के तकरीबन सभी हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में मुकदमो की पैरवी कर चुकी हैं। महिलाओं के अधिकार और कैदियों को लेकर वो हमेशा मुखर रही हैं। कमलेश जैन नीतिरीति के लिए अपने विचार और अनुभव लिखती रही हैं।

चुनावी बॉन्ड पर भारत के सबसे बड़े बैंक स्टेट बैंक ऑफ इंडिया को फटकार पर फटकार मिल रही है। शुक्रवार, 15 मार्च 2024 की सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने इस बात पर ऐतराज जताया कि SBI ने चुनाव आयोग को डो डाटा दिया गया उसमें बॉन्ड नंबर क्यों नहीं है। बॉन्ड नंबर मिलने से ये पता चल जाएगा कि किस पार्टी को किसने चंदा दिया। अदालत ने SBI को नोटिस जारी किया और सोमवार को दोबारा सुनवाई करेगी। दरअसल ये पूरा मामला चुनावी चंदे का है जिसे लेकर पिछले कई सालों से सवाल खड़े हो रहे हैं कि कौन किसे…

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पिछले 30-35 वर्षों में जैसे-जैसे स्त्रियों में जागरूकता आई है नये कानूनों के प्रति वैसे-वैसे उनके अंदर सदियों से दबे-कुचले होने, दोयम दर्जे की नागरिक होने का एहसास गहराया है। पहले वे इसे अपनी नियति मानती थीं, पर अब अधिकार। यह अधिकार खासकर शहरी, शिक्षित स्त्रियों ने समझा है। वे इस अधिकार को अब छीनकर, दूसरे पक्ष को कुचल कर, नेस्तनाबूद करना चाहती हैं। एक हिंसक प्रवृत्ति उनमें जाग गई है। यह घातक है समाज देश के प्रति। वे जगे अच्छा है, अपना अधिकार भी पाएं पर दूसरे पक्ष को नष्ट कर यह अच्छा नहीं है। इसमें वे खुद भी…

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एक समय था जब लड़की के मायके वाले लड़की का विवाह, एक पवित्र संस्कार के तहत, अपनी हैसियत के अनुसार अपनी मर्जी से, दान में कुछ सामान और अपनी पुत्री को ससुराल विदा करते थे। लड़के वाले कुछ समय बाद दहेज मांगने लगे, लड़की के पिता कर्ज लेकर, जमीन बेचकर, दहेज का इंतजाम करते और बेटी को विदा कर देते। यह सब कुछ कहीं-कहीं, किसी परिवार के लिए अत्यंत कष्टप्रद होता। इसे देखते हुए दहेज कानून ‘दहेज निषेध कानून 1961 आया।’ इसके अंतर्गत शादी के पहले, शादी के अवसर पर और शादी के बाद दहेज लेना और देना दोनों ही…

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16 अगस्त  2023 को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने लोकसभा में 3 विधेयक प्रस्तुत किए जिनसे ब्रिटिश काल के कानूनों में आमूल-चूल परिवर्तन लाना था।  ये है इंडियन पीनल कोर्ट- 1860 (IPC-1860), इंडियन एविडेंस एक्ट-1872 तथा कोड ऑफ क्रिमिनल प्रोसीजर (CRPc)- 1898 है जो कि  क्रमश: 163 वर्ष, 151 वर्ष और  125 वर्ष पुराने हैं। इस विधेयक का नाम भारतीय न्याय संहिता है । यह भारतीय दंड कानून में आवश्यक परिवर्तन करता है जो कि आज के समय में अति आवश्यक है। अपराधों के तरीके, हथियार सब कुछ समय के बदलाव से बिल्कुल बदल गए हैं। इलेक्ट्रॉनिक गेजेट्स हैं…

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एक समय था जब भारत में संयुक्त परिवार होते थे। दादा-दादी, माता-पिता, बेटे-बहू, पोते-पोतियां सभी अपनी-अपनी जिम्मेदारी निभाते, खुश और स्वस्थ रहते थे। छोटी-मोटी शिकायतें अवश्य होतीं पर वे सुलझा ली जाती आराम से। इसे खींचा नहीं जाता, अंतिम तक बदला लेने की प्रवृत्ति नहीं थी। पर आज माहौल अलग है। पति-पत्नी की आपस में नहीं बनती, बच्चों पर किसी का अनुशासन नहीं चलता। एकल परिवार है, उसमें भी मेल नहीं है। आये दिन पति-पत्नी अदालत का रुख करते हैं। बच्चे कहां जाएं, वे कैसे बड़े हो, शिक्षित हों, माता के पास रहे या पिता के पास समझ नहीं आता।…

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एयर होस्टेस गीतिका शर्मा के मामले में 11 वर्षों के बाद फैसला आया है। मुख्य अभियुक्त थे गोपाल कांडा। और भी कई तथ्यों के अलावा मामला मुख्यत: गीतिका के सुसाइड नोट पर आधारित था। आपराधिक मामलों में बाकी सुबूतों के अलावा यदि सुसाइड नोट भी एक साक्ष्य है, तो अदालत उसे पुख्ता मानती है, क्योंकि यह माना जाता है कि मौत के मुंह में जाता व्यक्ति झूठ नहीं बोलता। मगर सुसाइड नोट तब कारगर होता है, जब वह प्रताड़ना-उकसावे के बाद ही आत्महत्या करने की गवाही दे रहा हो। यानी, सुसाइड नोट लिखने और आत्महत्या के बीच का फासला यह…

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मणिपुर की घटना आहत करने वाली, मर्माहत एवं शर्मिंदा करने वाली है, पर मैं आश्चर्यचकित नहीं हूँ। ऐसी घटनाएं देश में कहीं- न- कहीं होती रहती है, आज से नहीं, सालोंं से । पिछले 45 वर्षों से वकालत में रहते हुए मैं ये जानती हूँ। एफआइआर(FIR), केस डायरी पढ़कर जानती हूँ। पीड़िता की तरफ से कोर्ट में बहस करते हुए जानती हूँ, कानून की किताबों का अध्ययन करते हुए पुराने फैसले पढ़ते हुए भी जानती हूँ। यह एक ऐसा अपराध है जो पता नहीं कब से होता आ रहा है। हमारे देश में ही कानून के संशोधन से पहले जब…

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समान नागरिक संहिता यानी यूनिफॉर्म सिविल कोड (UCC) की चर्चा अक्सर होती है और थम जाती है। यहां ‘समानता’ का अर्थ है- शादी, तलाक, वारिस और गोद लेना, इनमें संपूर्ण भारत भर में, सभी धर्मों में, एक कानून का होना। संविधान की प्रस्तावना में हम व्यक्तिगत सम्मान के साथ भ्रातृत्व एवं राष्ट्र की एकता का समावेश चाहते हैं। 1976 में हमने प्रस्तावना को बदल कर कहा- ‘व्यक्ति की गरिमा, राष्ट्र की एकता और अखंडता सुनिश्चित करने वाली बंधुता बढ़ाने के लिए” (पहले था भारत की अखंडता)। पूर्व चीफ जस्टिस गजेन्द्र गडकर ने कहा, एक नए ‘सेकुलर सोसल आर्डर’ को प्राप्त…

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वकालत में हमेशा कानूनी मुद्दों से बात नहीं बनती। कारण है न्यायाधीश भी आखिर हमारे आपके जैसे होते है। इसी परिवेश समाज से आते हैं। जब बातें सीधी तरह समझाई नहीं जा सकतीं तो उन्हें व्यवहार ज्ञान समझाया जाता है। जैसे रामकृष्ण परमहंस जी पढ़े लिखे नहीं थे, वे अपनी गूढ़ बातें, साधारण रोज़मर्रा की घटनाओं, व्यवहार से इतनी अच्छी तरह समझा देते कि कोई भी व्यक्ति उसे समझ ही जाता। जैसे उन्होंने कहा- एक किसान ने सारा दिन गन्ने के खेत में पानी सींचने के बाद जाकर देखा खेत में बूंद भर भी पानी नहीं पहुंचा है। खेत में…

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