मणिपुर की घटना आहत करने वाली, मर्माहत एवं शर्मिंदा करने वाली है, पर मैं आश्चर्यचकित नहीं हूँ। ऐसी घटनाएं देश में कहीं- न- कहीं होती रहती है, आज से नहीं, सालोंं से । पिछले 45 वर्षों से वकालत में रहते हुए मैं ये जानती हूँ। एफआइआर(FIR), केस डायरी पढ़कर जानती हूँ। पीड़िता की तरफ से कोर्ट में बहस करते हुए जानती हूँ, कानून की किताबों का अध्ययन करते हुए पुराने फैसले पढ़ते हुए भी जानती हूँ। यह एक ऐसा अपराध है जो पता नहीं कब से होता आ रहा है।
हमारे देश में ही कानून के संशोधन से पहले जब कोई रेप पीड़िता इस अपराध की शिकायत करने जाती तो एफआईआर में पीड़िता को सह- अभियुक्त की श्रेणी में रखा जाता। यानी कानून मानता था कि बिना उसकी सहमति साथ यह अपराध हो ही नहीं सकता।
लिहाजा उसे बताना होता कि वह अकेली थी, उसकी कोई इच्छा नहीं थी। उसको पुरुष के संग- साथ जाना ही नहीं था, वो बिल्कुल पवित्र थी, उसका कोई पुरुष मित्र नहीं था। उसने उसने बकायदा शोर मचाया था आदि..आदि। यदि वो ये सब साबित कर देती तब उसे साबित करना होता यही वह व्यक्ति है जिसने उसके साथ यह कुकृत्य किया।
यही नहीं भारत साक्ष्य अधिनियम(Evidence Act) बकायदा अभियुक्त को सलाह दी गई थी कि वह बलात्कार का दोषी बनाया जाए तो वह यह बात अपने बचाव में कह सकता है कि शिकायतकर्ता चरित्रहीन है।
सब जानते हैं कि अधिकतर ये मामले किसी अकेली, सुनसान जगह पर होते हैं जहाँ कोई गवाह नहीं होता। और जब या चौराहे पर होता है, दिन में होता है, आसपास लोगों के सामने होता है तो एक भी गवाह नहीं होता, कोई कुछ बोलने की हिम्मत नहीं करता। मणिपुर में जिन दो महिलाओंं के साथ ऐसा घिनौना काम किया गया उसमें से एक महिला का पति सेना में था। उसे इसका मलाल है कि वो देश की तो रक्षा कर पाया लेकिन अपने परिवार की ही नहीं कर पाया। आमतौर पर ऐसा होता रहा है कि सेना के लोगों के परिवार को प्रताड़ित किया जाता है, उनकी प्रॉपर्टी हड़प ली जाती है और उस वक्त अपने देश की रक्षा में जुटे रहते हैं।
बड़ी मुश्किलों से, वह भी अदालतों की वजह से स्थिति कुछ सुधरी है पर बहुत कुछ बाकी है।
मणिपुर में गैंग रेप और निर्वस्त्र करके परेड की घटना 70 से 75 दिन पहले हुई है। पर यही घटनाएं तो पूरे देश में, जब से मैं वकालत कर कर रही हूँ तब से और हमेशा से हो रही है । संयुक्त बिहार में और बाद में रांची यानी झारखंड और बिहार में ये घटनाएं लगातार होते रही है। बात बात में अनचाही, खुद पर भारी दिखती, अकेले अपना जीवन मेहनत कर गुजारा करती महिलाएं आस पड़ोस में डायन की उपाधि पाकर गैंग रेप और निर्वस्त्र करके घूमाने की शिकार होती रहती है। तभी तो डायन पर कानून लाया गया। अशिक्षित, गरीब और असंगठित महिलाएं सारे देश में इस बर्बरता का शिकार होती रहती है।उनके मुकदमे कभी कभार सर्वोच्च न्यायालय तक आते हैं।
ऐसी ही घटना अभी पश्चिम बंगाल में भी हुई है और पीड़िता ने बाकायदा टीवी पर आकर बयान भी दिया है।
बात राजस्थान की। सबसे ज्यादा महिलाओं पर अत्याचार की बात जब राजस्थान के एक मंत्री ने सदन में की तो उसी का इस्तीफा ले लिया गया। मंत्री ने कहा था कि महिलाओं पर अत्याचार के मामले को हम रोक नहीं पा रहे हैं।
यह एक मानसिकता है, एक सोच है जिसमें स्त्री और पुरुष सब बढ़ चढ़कर भाग लेते हैं, मानव तन की नुमाइश कराकर जश्न मनाते हैं।
इस सोच, इस मानसिकता पर एक जोरदार चोट की जरूरत है, कानून से, न्यायालय से। कानून फांसी की सजा दे न्यायालय छह महीने में पुलिस से लेकर सर्वोच्च न्यायालय तक मुकदमा समाप्त करे।
(लेखिका सुप्रीम कोर्ट की वरिष्ठ वकील हैं और ये उनके निजी विचार हैं।)