क्या है ज्ञानवापी का मुद्दा ?
वाराणसी में ज्ञानवापी विवाद को लेकर आप हर रोज कुछ ना कुछ सुनते होंगे लेकिन शायद आपको पता नहीं होगा कि ये पूरा मसला क्या है और इसके हल होने से क्या होगा। वहां की जिला अदालत में ये मामला चल रहा है और 12 सितंबर 2022 को जिला जज ने हिंदू महिलाओं की याचिका को सुनवाई योग्य करार दिया जिसमें श्रृंगार गौरी की पूजा रोजाना करने की अनुमति मांगी गई थी। इस याचिका का मुस्लिम पक्ष ये कहकर विरोध कर रहे थे कि ज्ञानवापी मस्जिद एक वक्फ संपत्ति है हिंदू महिलाओं की याचिका सुनवाई योग्य नहीं है।
हम आपको सरल शब्दों में समझाते हैं कि इस याचिका का मतलब क्या है और किसकी मांग क्या थी ? सबसे पहले हम आपको बताते हैं कि हिंदू पक्ष की क्या दलीलें हैं।
हिंदू पक्ष की दलील
- मुकदमा सिर्फ मां श्रृंगार गौरी के दर्शन-पूजन के लिए दाखिल किया गया है। दर्शन-पूजन सिविल अधिकार है और इसे रोका नहीं जाना चाहिए।
- मां श्रृंगार गौरी का मंदिर विवादित ज्ञानवापी परिसर के पीछे है। वहां अवैध निर्माण कर मस्जिद बनाई गई है।
- वक्फ बोर्ड ये तय नहीं करेगा कि महादेव की पूजा कहां होगी। देश की आजादी के दिन से लेकर वर्ष 1993 तक मां श्रृंगार गौरी की नियमित पूजा होती थी।
- श्रीकाशी विश्वनाथ मंदिर एक्ट में आराजी नंबर-9130 देवता की जगह मानी गई है। आराजी उस नंबर को कहते हैं, जो सरकारी रिकॉर्ड में उस जमीन के सामने दर्ज है।
- हिंदू पक्ष का दावा है कि ज्ञानवापी मस्जिद के वजूखाने में शिवलिंग मिला है। वहीं, मुस्लिम पक्ष का दावा है कि वह शिवलिंग नहीं बल्कि पुराना खराब पड़ा हुआ फव्वारा है।
मुस्लिम पक्ष की दलील
- ज्ञानवापी परिसर में आराजी नंबर-9130 पर लगभग 600 वर्ष से ज्यादा समय से मस्जिद कायम है। वहां वाराणसी और आस-पास के मुस्लिम 5 वक्त की नमाज अदा करते हैं।
- संसद ने दी प्लेसेज ऑफ वर्शिप (स्पेशल प्रोविज़न) एक्ट 1991 बनाया। इसमें प्रावधान है कि जो धार्मिक स्थल 15 अगस्त 1947 को जिस हालत में थे, वह उसी हालत में बने रहेंगे।
- ज्ञानवापी मस्जिद वक्फ की संपत्ति है। इससे संबंधित अधिकार यूपी सुन्नी सेंट्रल बोर्ड ऑफ वक्फ लखनऊ को है। ऐसे में इस अदालत को सुनवाई का क्षेत्राधिकार नहीं है।
- मौलिक अधिकार के तहत हाईकोर्ट में याचिका दाखिल करनी चाहिए। मुकदमा कानूनन खारिज़ किए जाने लायक है।
- वर्ष 1983 में उत्तर प्रदेश सरकार ने श्रीकाशी विश्वनाथ अधिनियम 1983 बनाया गया। इससे संपूर्ण काशी विश्वनाथ परिसर की देखरेख के लिए बोर्ड ऑफ ट्रस्टी बनाने का प्रॉविजन है।
दरअसल ज्ञानवापी का मामला सैकड़ों सालों से चला आ रहा है और इसको समझने के लिए आपको थोड़ा पीछे चलना पड़ेगा।
क्या है मान्यता
मान्यता है कि 1669 में औरंगजेब ने काशी विश्वनाथ मंदिर का एक हिस्सा तोड़कर ज्ञानवापी मस्जिद बनवाई थी। कुछ इतिहासकार कहते हैं कि 14वीं सदी में जौनपुर के शर्की सुल्तान ने मंदिर को तुड़वाकर ज्ञानवापी मस्जिद बनवाई थी।
ये भी कहा जाता है कि अकबर ने 1585 में नए मजहब दीन-ए-इलाही के तहत विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी मस्जिद बनवाई थी।
मस्जिद और विश्वनाथ मंदिर के बीच 10 फीट गहरा कुआं है, जिसे ज्ञानवापी कहा जाता है। मान्यता है कि इसी कुएं के नाम पर मस्जिद का नाम पड़ा।
हिंदू पक्ष की तरफ से कहा जाता है कि स्कंद पुराण के मुताबिक भगवान शिव ने स्वयं लिंगाभिषेक के लिए अपने त्रिशूल से ये कुआं बनाया था।
शिवजी ने यहीं अपनी पत्नी पार्वती को ज्ञान दिया था, इसलिए इस जगह का नाम ज्ञानवापी या ज्ञान का कुआं पड़ा। पुराणों के मुताबिक ये पूरी जगह विश्वनाथ मंदिर का ही था और मुस्लिम राजाओं ने उसे कई बार अलग करने की कोशिश की।
अदालत के फैसले का आधार
वाराणसी जिला अदालत ने तीन बड़े कानूनों का हवाला दिया है वो भी आपको जानना चाहिए। इसमें से पहला कानून है The places of worship act (‘द प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट’) 1991.. ये कानून बाबरी मस्जिद गिराए जाने से कुछ महीने पहले नरसिम्हा राव सरकार ने पास कराया था। ज्ञानवापी विवाद की पूरी बहस द प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट, 1991 कानून के इर्द-गिर्द टिकी हुई है। द प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट पूजा या उपासना स्थलों को बदले जाने से रोकता है। कानून के मुताबिक 15 अगस्त 1947 को उपासना स्थल जिस धार्मिक रूप में थे, वो बरकरार रहेगा। यानी आजादी के वक्त अगर कोई मस्जिद थी, तो बाद में उसे बदलकर मंदिर या चर्च या गुरुद्वारा नहीं किया जा सकता। ये कानून 11 जुलाई 1991 को लागू किया गया।
दूसरा कानून है वक्फ एक्ट 1985.. मुस्लिम पक्ष का कहना है ज्ञानवापी वक्फ की जमीन है लिहाजा वाराणसी जिला अदालत इस पर सुनवाई नहीं करे ,सिर्फ वक्फ ट्रिब्यूनल लखनऊ में इसकी सुनवाई हो लेकिन कोर्ट ने इसे नहीं माना।
तीसरा कानून है उत्तर प्रदेश श्री काशी विश्वनाथ टेंपल एक्ट 1983. इस एक्ट में साफ है कि काशी विश्वनाथ कमेटी में केवल हिंदू ही कार्यवाहक होंगे। ऐसे में मुस्लिम धर्मस्थल पर दावा किस आधार पर किया जा रहा है।
कोर्ट ने मुस्लिम पक्ष के तीनों एक्ट की व्याख्या को सही नहीं माना उनकी दलीलें खारिज कर दीं।
अभी कहां है पूरा ज्ञानवापी का केस
दरअसल साल 1991 में हिंदू पक्ष की तरफ से वाराणसी जिला अदालत में एक याचिका दाखिल की गई थी जिसमें मांग की गई थी कि ज्ञानवापी परिसर की पूरी जमीन काशी विश्वनाथ मंदिर का हिस्सा है इसलिए पूरे हिस्से को मंदिर घोषित किया जाए। इसके खिलाफ मुस्लिम पक्ष, ज्ञानवापी मस्जिद मैनेजमेंट कमेटी ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में अपील दाखिल की और हिंदू पक्ष के दावे को गलत ठहराया। हाईकोर्ट ने पूरी सुनवाई पर अनिश्चित काल के लिए रोक लगा दिया है।
इस बीच, वाराणसी जिला अदालत ने पुरातत्व विभाग यानी ASI को विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी परिसर का सर्वे कराने का आदेश दिया था। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने फिलहाल इस याचिका पर रोक लगी है।