पिछले वर्ष सामूहिक बलात्कार की शिकार एक नाबालिग लड़की जयपुर के सरकारी स्कूल में पढ़ती थी। घटना के बाद ही स्कूल ने उसका नाम काट दिया। पांच महीनों तक उसे स्कूल आने से वंचित किया गया। जब उसने इस अत्याचार के विरुद्ध आवाज उठाई तो स्कूल एडमिनिस्ट्रेशन ने कहा, ‘उसके स्कूल आने से स्कूल का वातावरण दूषित हो जाएगा।’ यही नहीं लड़की को बोर्ड की परीक्षा में बैठने की अनुमति भी नहीं दी और एडमिट कार्ड नहीं दिया गया।
इस पर शहर की ‘चाइल्ड वेलफेयर कमेटी’ ने बीच-बचाव किया जिसके बाद स्टेट एजुकेशन डिपार्टमेंट ने एक जांच के आदेश दिए। लड़की ने अपने पिता के साथ अजमेर चाइल्ड वेलफेयर बॉडी से बीच-बचाव करने का आवेदन दिया। कमेटी ने डिस्ट्रिक्ट एजुकेशन ऑफिसर और कलेक्टर को भी घटना की सूचना दी। मामले के बारे में कमेटी की चीफ अंजलि शर्मा को सूचित किया गया। उन्होंने आदेश दिया कि उचित कार्रवाई और घटना की पूरी जांच की जाएगी। उन्होंने कहा कि हमारी प्राथमिकता होगी कि लड़की को परीक्षा में बैठने की अनुमति दी जाए, जोकि वह मार्च में नहीं दे पाई।
राज्यमंत्री मदन मालवीय ने भी मामले की जांच करने का आदेश दिया। उन्होंने कहा, हमने जांच के आदेश दे दिए हैं और गलती करने पर स्कूल पर कठोर एक्शन लिया जाएगा। हम इस बात का भी इंतजाम करेंगे कि छात्रा को परीक्षा देने दी जाए। पुलिस ने बताया कि छात्रा के चाचा और उसके दो सहायकों ने उसे अगवा किया और 18 अक्टूबर 2023 को उसके साथ सामूहिक अत्याचार किया।
स्कूल की प्रिंसिपल अमिता पांडे से कई बार बात करने की कोशिश की गई पर वह फोन पर भी उपलब्ध नहीं हुई। छात्रा ने एफआईआर भी फाइल की जिसमें धारा 376/1 (गैंगरेप का केस) का मामला दर्ज किया गया और अभियुक्त पकड़े गए। प्रमुख अभियुक्त बेल पर था और बाकी दो जेल में।
केस फाइल होते ही स्कूल प्रशासन ने छात्रा का स्कूल आना बंद कर दिया कारण दूसरे बच्चों के अभिभावक नहीं चाहते थे। स्कूल की प्रिंसिपल ने कहा परीक्षा का एडमिट कार्ड उसके घर पहुंच जाएगा, जिससे वह परीक्षा दे सके। फिर कहा, छात्रा का रजिस्ट्रेशन कैंसिल हो गया, कारण वह चार महीनों से ज्यादा से स्कूल नहीं आ रही थी।
यह बच्ची के साथ सोची-समझी चाल थी। पहले तो स्कूल अपनी छात्रा को स्कूल आने से नहीं रोक सकता, इस आधार पर उसका एडमिशन कैंसल नहीं कर सकता और फिर परीक्षा देने से भी नहीं मना कर सकता। स्कूल विद्या का मंदिर है। शिक्षक बच्चे के साथ-साथ बच्चे के परिवार व समाज सभी के प्रति जिम्मेदार हैं। उनका काम बच्चों को, अभिभावक को उचित व्यवहार करना, सही निर्णय लेना सिखाना है। पर यहां, बच्ची का परिवार उसका साथ दे रहा है, पर स्कूल ही पीछे हट रहा है। यह एक सरकारी स्कूल है, शिक्षकों के वेतन या नौकरी कर कोई खतरा नहीं। यदि कोई स्कूल का वातावरण खराब करता है तो उसे उचित शिक्षा देनी है, बच्चों या अभिभावकों को यह बताना है कि छात्रा महज एक पीड़िता है, कोई अपराधी नहीं, वह दोषी नहीं है। उसका चरित्र निर्मल है, बच्ची में साहस भरना चाहिए, एक नार्मल जिंदगी जीने के लिए, उसे जरूरत हो तो मनोवैज्ञानिक सहायता दिलवाना आदि। पुलिस को भी जांच में अपनी सहायता देना जरूरी है। एक रेप सरवाइवर को मैंने कहा था,‘ आपको अपमानित महसूस करने की जरूरत नहीं है, शर्मिदा वह हो जिन्होंने अपराध किया है।’
नब्बे के दशक में मैंने एक पुलिस सब इंस्पेक्टर (आदिवासी) सरवाइवर से मुलाकात की थी। उसी के विभाग के दो सीनियर ऑफिसर ने धोखे से बुलाकर यह हरकत की थी। सारे देश में खबर छपी पर कोई कार्रवाई कहीं नहीं हुई। मैंने ऑफिस जाकर पूछा, ‘आपने इसमें क्या एक्शन लिया?’ उन्होंने केस से ही अनभिज्ञता जाहिर की। मैंने कहा,‘ पूरे देश के नेशनल अखबारों में यह खबर प्रमुखता से है, आपने एफआईआर तक नहीं दर्ज की। आपको कोई खबर नहीं है तो आप इस पोस्ट से इस्तीफा दें।’
लड़की को जब देखा वह स्टोर रूम में मुंह छुपाए बैठी थी। मैंने कहा, ‘ऐसे क्यों बैठी हो, आफिस क्यों नहीं गई कई दिनों से’, उसने कहा, ‘किस मुंह से जाऊं?’ मेरा जवाब था,‘इसी मुंह से। तुमने कोई अपराध नहीं किया, वे अपराधी हैं। कल से ऑफिस जाओ। इसे ऐसे समझो जैसे तुम रास्ते पर जा रही थी, एक गाड़ी ने तुम्हारे पांव पर पहिया चला दिया। तुम हास्पिटल जाओगी या मुंह छुपाकर रोओगी? यह सिर्फ एक एक्सीडेंट है। तुम निर्दोष हो।’
ऐसे मामलों में लड़कियों को, परिवार को, समाज को लज्जित होने की जरूरत नहीं है। लड़कियां वैसी ही पवित्र हैं जैसे उन्हें ईश्वर ने बनाया है। घर आकर मैंने हूबहू घटना की बात सर्वोच्च न्यायालय में चीफ जस्टिस को लिखी। एक्शन लेने को कहा, कोर्ट ने साथ दिया, वे पुलिस ऑफिसर डिसमिस हुए, केस चला। लड़की अपनी नौकरी में जाती रही। साथ ही मेरा लेटर पेपर्स में छापा गया।
इसी प्रकार इस केस की तरह 25 वर्ष पहले दिल्ली के सरकारी स्कूल में एक छात्रा के साथ यह घटना हुई। परिवार साथ देता रहा, पर स्कूल ने साथ नहीं दिया। स्कूल जाना बंद करवा दिया। तब लड़की ने शर्म से आत्महत्या कर ली थी। यह स्कूल भी यही कर रहा है। ऊपर हर तरह का एक्शन लिया जाए, लड़की को ससम्मान स्कूल में वापस लें, परीक्षा देने दी जाए।
(लेखिका सुप्रीम कोर्ट की वरिष्ठ वकील हैं और ये उनके निजी विचार हैं)