गुरुवार को केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजिजु ने राज्यसभा में कहा कि देश में पेंडिंग केसों की संख्या 5 करोड़ का आंकड़ा छूने वाला है। भले ही ये आंकड़ा एक गिनती भर दिख रहा हो लेकिन ज़मीन पर यह एक भयावह स्थिति को बयान करता है। लोग न्याय के लिए सालों इंतज़ार कर रहे हैं और कभी कभी तो दशकों तक। हमारे देश में ये कहावत है कि एक दीवानी यानी सिविल मुकदमे में अगर कोई व्यक्ति मुकदमा दायर करे तो सुप्रीम कोर्ट तक से न्याय उसके पोते को मिलने के आसार होते हैं। देरी से मिला हुआ न्याय एक तरह से न्याय नहीं मिलने बराबर है।
लंबित मामलों की वजह
इसके पीछे की क्या वजहें है? अगर इस पर गहराई से जाएं तो पता चलेगा कि सिर्फ एक ही वजह नहीं है देश में पेंडिंग केसों के बढने की। इसमें देश की आबादी, जजों की कम संख्या, सरकार का अपील में जाना, न्यायपालिका का पुराने ढर्रे पर काम करना, वैकल्पिक व्यवस्था पर जानबूझ कर काम नहीं करना और “मेरा क्या जाता है के attitude पर काम करना।“ ऐसी कई और वजहें हैं जिसकी वजह से देश में लोगों को न्याय नहीं के बराबर मिल रहा है।
केसों की संख्या
आज की ताऱीख में देश में सिर्फ निचली अदालतों में करीब 4.3 करोड़ केस लंबित हैं। इसमें से भी करीब 3 करोड़ 18 लाख क्रिमिनल केस हैं, एक करोड़ 10 लाख के करीब सिविल के मामले लंबित हैं। देश भर के हाईकोर्ट्स में करीब 58 लाख केस लंबित है। इसमें करीब 41 लाख केस सिविल केस हैं और बाकी क्रिमिनल के। सुप्रीम कोर्ट में फिलहाल करीब 70 हज़ार केस लंबित है। यानी कुल मिलाकर ये आंकड़ा करीब 5 करोड़ पेंडिंग केसों का है।
कानून मंत्री ने सवाल उठाया कि कॉलेजियम के ज़रिए जजों की नियुक्ति की वजह से पेंडिंग केस बढ रहे हैं लेकिन यहां ध्यान देने की बात है निचली अदालतों में जजों की नियुक्ति के लिए जुडिशियल परीक्षा होती है उसे पास करने के बाद जज नियुक्त होते हैं। ये परीक्षा राज्य सरकारें कराती हैं और पास करने वाले निचली अदालतों में जज नियुक्त होतें हैं। सिर्फ सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के जजों की नियुक्ति कॉलेजियम के जरिए होती है और इन दोनों कोर्ट को जोड़ दें तो करीब 59 लाख केस ही बनते हैं। यानी अगर सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट को किनारे करें तो देश में करीब सवा चार करोड़ केसों को निपटारे की जिम्मेवारी राज्यों की और वहां की निचली अदालतों की है। क्योंकि जजों की नियुक्ति का अधिकार वहां की सरकार के पास ही होता है और चाहे तो इस पर ज्यादा काम कर सकती है।
देश में कितने जज
अब आपको जानना चाहिए देश की 140 करोड़ जनता पर जजों की संख्या कितनी है।
30 अप्रैल 2022 को सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन चीफ जस्टिस एन. वी. रमना ने एक आंकड़ा दिया था। इसके मुताबिक भारत में हर 10 लाख की आबादी पर सिर्फ 20 जज हैं । देश के सभी हाईकोर्टों में करीब 1108 जजों की पोस्ट हैं और इसमें से भी करीब 334 खाली हैं। सुप्रीम कोर्ट में कुल 34 में से 28 जज हैं।
न्यायपालिका पर भारत की जीडीपी का सिर्फ 0.1 फीसदी खर्च होता है और रक्षा बजट पर 2 फीसदी।
ये पैसे दूसरे विकसित देशों के मुकाबले ये नहीं के बराबर है। ब्रिटेन में कुल बजट का करीब 14 फीसदी पैसा न्यायपालिका पर खर्च होता है।
ये तो बात हुई समस्या की। लेकिन इसका समाधान क्या है?
क्या है समाधान
- सबसे पहले जनता में ये भरोसा देना पड़ेगा कि उसके केस का निपटारा जल्द हो सकता है और इसमें केंद्र का कम और राज्य सरकारों का ज्यादा रोल है।
- देश में सिर्फ जजों की संख्या बढ़ाने से काम नहीं चलेगा बल्कि पूरे सिस्टम को बड़ा करना होगा।
- देश में जितने पेंडिग केस हैं उसमें आधे से भी ज्यादा में सरकार किसी ना किसी तरह से पार्टी होती है। सरकार चाहे तो छोटे छोटे मामले आराम से खत्म करा सकती है।
- देश की ग्राम न्यायालयों को और पावर देकर केस को अगर वहीं खत्म करने की दिशा में काम हो तो उससे भी केस कम होंगे। देश में फिलहाल करीब 6 लाख गांव हैं और सिर्फ 476 ग्राम न्यायालय हैं।
- देश की लोक अदालतों में अभी भी कम केसों के निपटारे हो रहे हैं। जैसे 2022 में करीब 11 लाख केस निपटारे हुए हैं जो कि काफी ज्यादा किये जा सकते हैं।
- भारत में 5जी तकनीक के बाद अगर सरकार और अदालतें नए टारगेट के साथ काम करें तो चमत्कार हो सकता है।
- पेपरलेस कोर्ट तो बन रही है लेकिन हर केस के लिए एक टार्गेट भी रखना होगा कि ये केस इतने दिनों में खत्म होगा।