नई दिल्ली, 7 नवंबर
अपने एक अहम फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने बलात्कार के दोषी तीन लोगों को बरी कर दिया है। दिल्ली के छावला इलाके में तीन लोगों ने एक लड़की का बलात्कार के बाद हत्या कर दी थी। निचली अदालत और दिल्ली हाईकोर्ट ने तीनों को मौत की सजा सुनाई थी। सुप्रीम कोर्ट की तीन जजों की बेंच ने इस फैसले को पलट दिया और कहा कि इतने सबूत नहीं थे जिसके आधार पर कहा जा सके कि इन तीनों का पीड़िता से बलात्कार और उसकी हत्या में हाथ था।
राहुल, रवि कुमार और विनोद उर्फ छोटू नाम के दोषियों को बरी करते हुए अदालत का कहना था पुलिस के पास इतने ठोस सबूत नहीं है कि ये साबित हो जाए कि यही तीनों दोषी हैं।
चीफ जस्टिस उदय ललित की बेंच ने कहा कि पुलिस ने आरोप लगाए थे उसका पुख्ता आधार होना चाहिए था और उसमें किसी भी तरह का संशय नहीं होना चाहिए था लेकिन यहां पुलिस ये नहीं कर पाई। जघन्य अपराध करने के बावजूद अब अदालत के पास इनको बरी करने के अलावा कोई भी विकल्प नहीं बचता है। बेंच के बाकी दोनों जज थे जस्टिस रविंद्र भट्ट और जस्टिस बेला एम. त्रिवेदी।
हालांकि कोर्ट ने ये भी कहा कि भले ही दोषियों को आरोपमुक्त किया जा रहा है लेकिन पीड़िता के माता-पिता को मुआवजा दिया जाएगा।
10 साल पहले साल 2012 में उत्तराखंड की एक लड़की का तीनों युवकों, रवि कुमार, राहुल और विनोद ने अपहरण कर लिया। आरोपियों ने लड़की से बलात्कार करने के बाद उसकी हत्या कर दी। हत्या से पहले लड़की कार में इस्तेमाल होने वाले औजारों से पीटा था, शरीर पर जगह जगह सिगरेट से दागा था और उसके चेहरे को तेजाब से जला दिया था।
साल 2014 में निचली अदालत ने तीनों को दोषी करार दिया और फांसी की सज़ा सुनाई। इसी साल दिल्ली हाईकोर्ट ने फांसी की सज़ा पर मुहर लगाई और फिर मामला सुप्रीम कोर्ट आया था। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में लिखा है कि पुलिस ने कई गवाहों को नज़रअंदाज़ किया, जो सबूत थे उसको सही तरीके से नहीं देखा। डीएनए के सबूतों से भी छेड़छाड़ संभव हो सकता है और इन वजहों से आरोपियों को दोषी नहीं ठहराया जा सकता था। कुल 49 गवाह थे इस केस में लेकिन पुलिस ने कई अहम गवाहों को क्रॉस Examine नहीं किया जो अहम हो सकते थे। परिस्थितिजन्य सबूत में कोई कड़ी टूटनी नहीं चाहिए थी लेकिन इस मामले में ऐसा नहीं हुआ था।