समलैंगिक विवाह को लेकर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दूसरे दिन कई अहम बातें हुई। सबसे पहले केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में एक नया हलफनामा दाखिल कर समलैंगिक विवाह सुनवाई मामले में राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को भी पार्टी बनाने का आग्रह किया। इसके बाद, याचिकाकर्ता की तरफ से वरिष्ठ वकील मुकुल रोहतगी ने कहा कि औरों की तरह हमारे अधिकार की इज्जत होनी चाहिए, संविधान इसकी इजाजत देता है। रोहतगी का ये भी कहना था कि उन्हें सिर्फ शादी की मान्यता की ज़रुरत है।
क्यों आया हिंदू कोड बिल का ज़िक्र ?
सुनवाई के दौरान हिंदू कोड बिल का भी जिक्र आया था। साल 1950 में अंबेडकर ये बिल लेकर आए थे लेकिन ये बिल पास नहीं हो पाया था और अंबेडकर ने इसके बाद इस्तीफा दे दिया था। बाद में 1956 में फिर से ये बिल आया था लेकिन एक की जगह कई और बिल आए थे। रोहतगी की दलील थी कि जिस संसद ने 1950 में ये कानून स्वीकार नहीं किया था उसे बाद में स्वीकार कर लिया, ठीक उसी तरह से समाज इसे भी स्वीकार कर लेगा। रोहतगी की दलील है कि जब हम सार्वजनिक जगहों पर अपने पार्टनर के साथ जाते हैं तो हमें भी सम्मान मिलना चाहिए, हमें भी सभी के जैसा बराबरी मिले, शादी में भी समानता मिले, जीवन जीने का सम्मान के साथ अधिकार मिले। ऐसे ही भारत में विधवा विवाह पर कानून 1800 में आया था लेकिन सामाजिक मान्यता 1900 में भी मुश्किल से मिली।
किस पर थी केंद्र को आपत्ति
सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की संविधान पीठ समलैंगिक शादियों को लेकर सुनवाई कर रही है। चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ के अलावा 4 वरिष्ठ जज हैं और इनके नाम हैं जस्टिस एस.के. कौल, जस्टिस एस.आर.भट्ट, जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस पी.एस.नरसिम्हा । इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने साफ कर दिया था कि समलैंगिक शादियों को कानूनी मान्यता देने वाली याचिकाओं पर फैसला करते समय वह शादियों से जुड़े ‘पर्सनल लॉ’ पर विचार नहीं करेगा। सुनवाई के शुरू में इस बात को लेकर केंद्र सरकार ने आपत्ति जताई थी कि अदालत इस मामले की सुनवाई नहीं करें क्योंकि ये मामला संसद की परिधि में आता है। चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि अदालत में हम तय करेंगे कि क्या सुनना है और क्या नहीं। इसके बाद मामले की सुनवाई आगे शुरू हुई।
ये सुनवाई गुरुवार को भी जारी रहेगी और दूसरे याचिकाकर्ता के वकील अभिषेक मनु सिंघवी अपनी बात रखेंगे।